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सुमइनाह-चरियं रज्जभारह जोग्गि पइ पुत्ति परलोय-कज्जज्जम-मणि
मणुय-जम्म-फलु लेमि संपइ । इय जंपिवि पुहइवइ नियय-रज्जु कुमरह समप्पइ । गुरु-पय-मूलि तिविक्कमु वि जिणमय-दिक्ख पवन्नु । विसय-सोक्खु तह मोक्खु पहु सेविउ जाणइ धन्नु ।।२१।।१६८४|| तो निरंतर विसय-वासत्तु नरनाहु
निग्गयसुहिउ गमइ कालु । अह समइ अन्नहि गुण-गब्विय
दूय जुवराय मंति अप्पाणु वन्नहिं । इहु अम्हह दक्खत्तणिण पालइ रज्जु पमत्तु । पवणह विणु नणु पज्जलइ जलणु वि कित्तियमत्तु ।।२२||१६८५।। एउ निसुणिवि भणिउ नरवरिण
जुवराउ नामिण मयणु सुमइ-मंति तह दूउ सुवयणु ।
वसिहुउ विक्खेव विणु मह पयावमेत्तेण अरियणु । ता देसहँ दंसण-विसइ कोउगु फुरइ उदग्गु । इय जंपिवि सो संचलिउ करि-रह-तुरय-समग्गु ।।२३।।१६८६।। नगर-गिरि-सर-सरिय पेक्खंतु
निय-देस-सीमंति गउ ते भणेइ मणि मज्या वसेण ।
असहाय चत्तारि जण भमहु देस अम्हे अकिंचणा । तिहिं जंपिउ पहु पूरियइ वासण एह समत्त । रज्ज सुत्थु विरइवि चलिय ते कंचीपुरि पत्त ||२४||१६८७।। भूवइणा भणियं भोयणाई को तुम्ह अज्जु कारविही । जंपियमिमेहिं सो च्चिय जं देवो आणवेइ त्ति ||२५||१६८८।। दक्खो त्ति तओ दूओ आणत्तो पट्टणे पविहो सो | तम्मि दिणे तत्थ महो बहुओ वणियाणं ववहारो ||२६||१६८१।। पुडग बंधेउं एकु अखमो त्ति सो दुक्कओ हहि ।
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