SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५३ सुमइनाह-चरियं रज्जभारह जोग्गि पइ पुत्ति परलोय-कज्जज्जम-मणि मणुय-जम्म-फलु लेमि संपइ । इय जंपिवि पुहइवइ नियय-रज्जु कुमरह समप्पइ । गुरु-पय-मूलि तिविक्कमु वि जिणमय-दिक्ख पवन्नु । विसय-सोक्खु तह मोक्खु पहु सेविउ जाणइ धन्नु ।।२१।।१६८४|| तो निरंतर विसय-वासत्तु नरनाहु निग्गयसुहिउ गमइ कालु । अह समइ अन्नहि गुण-गब्विय दूय जुवराय मंति अप्पाणु वन्नहिं । इहु अम्हह दक्खत्तणिण पालइ रज्जु पमत्तु । पवणह विणु नणु पज्जलइ जलणु वि कित्तियमत्तु ।।२२||१६८५।। एउ निसुणिवि भणिउ नरवरिण जुवराउ नामिण मयणु सुमइ-मंति तह दूउ सुवयणु । वसिहुउ विक्खेव विणु मह पयावमेत्तेण अरियणु । ता देसहँ दंसण-विसइ कोउगु फुरइ उदग्गु । इय जंपिवि सो संचलिउ करि-रह-तुरय-समग्गु ।।२३।।१६८६।। नगर-गिरि-सर-सरिय पेक्खंतु निय-देस-सीमंति गउ ते भणेइ मणि मज्या वसेण । असहाय चत्तारि जण भमहु देस अम्हे अकिंचणा । तिहिं जंपिउ पहु पूरियइ वासण एह समत्त । रज्ज सुत्थु विरइवि चलिय ते कंचीपुरि पत्त ||२४||१६८७।। भूवइणा भणियं भोयणाई को तुम्ह अज्जु कारविही । जंपियमिमेहिं सो च्चिय जं देवो आणवेइ त्ति ||२५||१६८८।। दक्खो त्ति तओ दूओ आणत्तो पट्टणे पविहो सो | तम्मि दिणे तत्थ महो बहुओ वणियाणं ववहारो ||२६||१६८१।। पुडग बंधेउं एकु अखमो त्ति सो दुक्कओ हहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy