SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ तसु कुणइ तत्थ पुडगाइ-बंध | लट्ठोत्ति बहुमन्नियउ तिण विदत्तु वणिएण बहु धणु । भोयण - समइ समुहिइण जंतिण तिण निय-गेहि । दूउ पयंपिउ पाहुणय अम्हिहिं सहुं घरि एहि ||२७|| १६९०|| तेण वुत्तउ तिन्नि अन्नेवि मह मित्त चिडंति बहिरं । तु ते वि वाणिइण जंपिउ हक्कारिय ते वि । तिण भोयणाइं तं दिण्णु जं पिउ | तहिं दविणव्वउ वाणियह हूउ सवायउ दम्मु । जं पावइ फलु पत्तिउ जिण विहिउ विसहु वि कम्मु ||२८|| १६९१।। बीय- दिणि गय ते वि रयणउरि । नर आणत्तु भोयण - विसइ सुंदरी त्ति जुवराइण । - वेसिण तं नियइ मगह-गणिय गरुयाणुराइण । धूय मुणिवि नर - रमण मण चिंताभर मुक्काई । निब्बंधिण जुवराउ घरि हक्कारिउ अक्काइं ||२१||१६१२|| तत्थ पेच्छइ जुवइ जुवराउ कमलारुण-करचलण कुंभि-कुंभ- विब्भम - पउहर । कंदोहदलसम - नयण वयण- 1 T- विजिय-संपन्न - ससहर । तीए सहत्थिण कणयमय आसणि दिन्नि निविडु | आदत्तउ तिण तीइ सहुं जूय-विणोउ विसि ||३०|| १६९३|| अक्खजूइण तेण अक्खित्त सा उचिअ - वेलहिं । - - Jain Education International सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं भाइ पाणनाह मज्जेसु संपइ । अन्ने वि अच्छंति बहि मज्झ मित्त जुवराउ जंपइ, सा बुल्लइ आवंतु तिवि, हक्कारिय तो झत्ति । मज्जण - भोयण- पमुह तह विरइय गुरु-पडिवत्ति ||३१|| १६९४|| तत्थ दम्महं लग्ग सयपंच पंचेउरि नयरि गय ते वि तईयदिणि तो पसाइण । आणत्तु मइमंतु भणि भोयणत्थु वरमंति राईण | धम्माहिगरण सो वि गउ मइगुण जहिं अग्घंति । बुद्धिपहाण जि हुंति नर ति किंव कुकम्मु कुणंति ||३२|| १६१५|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy