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________________ २५५ सुमइनाह-चरियं तत्थान देस-वणिउ बालावच्चो दुभज्जओ अ मओ । तत्तो सुयमाया हं सुयमाया हं ति भणिरीणं ||३३||१६१६|| भज्जाणं ववहारो जाओ किरियाउ संति नो तेण छिज्जइ । नसो(तओ) विसल्ला नरिंद-पमुहा पुर-पहाणा ||३४|१६१७।। ताव सुमइणा भणिउ साणंद छिंदामि ववहारु हउं तेहि होउ एवं ति वुत्तउं । सो भणइ दारउ दविण दुन्नि भाग कीरहु । निरुत्तउ तं मन्नइ लोहिण इयर, न हु नेहिण सुय-माय । सुमइ भणइ निन्दा जणणि, लुन्दा पुण कयमाय ||३५||१६१८।। मुणिवि मंतिण छिन्न ववहारु नरनाहिण रंजिइण भोयणाई पडिवत्ति सव्वह । हक्कारिवि आयरिण विहिय विहिवि चउसहस-दम्मह || दियहि चउत्थइ ते वि गय गयउरि-नयरि पविट्ठ । नवरि नरिंदु सयं गयउ सुत्तु असोगह हिह ||३६||१६११।। एत्थु अवसरि सामि गयपुरह निप्पुत्तु पंचत्तु गउ पंच-दिव्व अहिसित्त लोइण | नीसेस पुरि परिभमिवि ताई पत्त अह दिव्वजोइण । नगरुज्जाणि असोग-तलि अपरावत्तिय-छाउ । पडिवन्नउ पुल्लिक्कनिहि पंचिहिं दिविहिं वि राउ ।।३७।।१७००।। पुरि पवेसिउ पुर-पहाणेहिं अहिसित्तउ रज्जि तसु तासु कन्न कन्नत-लोयण परिणेइ पंकय-वयण जयसिरि ति संपत्त-जोयण । गउरवि भोयण पमुहि तह लग्गउ दम्मह लक्खु । विणु पुनह नहि अण्णुगुणु रज्ज-समप्पण-दक्खु ||३८||१७०१|| तासु कइवय दिण अइक्वंत पालंतह रज्जसिरि । न व निवुत्ति जणयाण धरसहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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