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________________ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं संतावमुव्वहंतेण रन्ना भणियं- जमेरिसे पुरिसे सयल सत्त-संतोसकारए परपीडा - परम्मुहे कविलस्स दुरप्पणी इमं विरुद्धायरणं ति तं महंतमच्छरियं । ૪૧૨ अहवा किं अच्छेरं ? समत्त - जियलोय - लोयण- सुहस्स । हरिणकस्स कवलं गहकल्लोलो कुणइ किं न ? ||२८१२ || तो केसवेण वुत्तं- तेण नराहिव ! न किंचि अवरद्धं । केवलमिणं पुराकय- कडुकम्म वियंभियं मज्झ || २८१३ || जं "पुव्वे दुक्कम्मं कयं मए किंपि परिणयं तमिमं । कहमन्नहा न कुज्जा पीडमिमो सयल-लोयस्स ? ॥२८१४|| जं जेण पुव्व- जम्मे सुहमसुहं वा समज्जियं किंपि । तं चैव सोऽणुभुंजइ निमित्तमेत्तं परो होइ || २८१७ || ता न हु इमरस दोसो दोसो मह चेव पुव्व-पावस्स ।. जेण इमं कारविओ एसो नरनाह ! परमत्थी || २८१६ || पहठ- मुहपंक एण भणियं रन्ना - अहो ! मे फुरंत पसमावेगो केसवस्स विवेगो, विसुद्धा बुद्धी, अच्चब्भुयं चरियं जमेवंविहावराहकारगे वि ईसि पि न पओसो | अहवा, सुयणो न याणइ च्चिय कोवं काउं परे विरुद्धे वि । किं मुयइ कयाइ मयंक - मंडलं जलण-कण - वुडि ? ||२८१७|| दूमिज्जंतो वि हु दुज्जणेहिं सुयणो न जंपए कडुयं । निप्पीलिओ वि उच्छू महुर-रसं चिय समुग्गिरइ ॥ २८१८|| - एवं खणमेकं ठाऊण गओ राया सगिहं । केसवो वि जाओ पउणसरीरो । कविलो वि अकज्जकारि त्ति निव्वासिओ नयराओ रन्ना । परिब्भमंतो पत्तो महाडविं । तत्थ ससिकला - कुडिल- दाढा - कडप्पदुप्पेच्छ - मुह-कु हरेण पाविओ पंचत्तं पंचाणणेण । "मरिऊण रुद्दज्झाणोवगओ गओ रयणप्पहार पुढवीए । दहूण निय-बंधवस्स चरिय - पावासवं केसवो संवेगोवगओ गुणड-गुरुणो पासे गिहत्थोचियं धम्मं संपडिवज्जिऊण विहिणा तं पालिऊणं चिरं पंचत्तं लहिउं समाहिसहिओ सोहम्मकप्पं गओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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