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सुमइनाह-चरियं
पूरिय-समग्ग-मग्गण-मणोरहा रइय-चारु-नेवच्छा । पेच्छामि अगालच्छणमुज्जाणे विहरमाणा हं ।।८||१६७१।। तो नरिं दिण गरुय-नेहेण संपाडिय दोहलय,
उचिय-कालि सा पुत्तु पसवइ ।। विलसंत-तेयप्पसर पहय-तिमिरु पुन्व व्व दिणवइ । तं निसुणिवि नरवइ हुयउ हरिसाऊरिय-काउ | सुय-जम्मिण जणु हरिसियइ इयरु वि किं पुण राउ ||9||१६७२।। ठांवि ठांवि वर-मंच रइज्जहिं । .
पहि पहि मुत्तिय-सत्थिय दिज्जहिं । घरि घरि वंदणमाल निबज्झहिं ।
पगि पगि कप्पूरागुरु डज्झहिं ||१०||१६७३।। हट्टसोह सव्वत्थ वि किज्जइ ।
गयण-विलग्ग पडाय ठविज्जइ । रायमग्ग कुंकुम-रसि सिच्चहिं ।
कामिणी पीणपओहर नच्चहिं ||११||१६७४।। वज्जहिं तूर सद्द-भरियंबर |
पविसहिं अक्खइवत्त निरंतर । पउर पढंत छत्त परिवारिय ।
नयरुज्झायई ति य निवारिय ||१२||१६७५।। असण-वसण-तंबोलिहिं सायर ।
सम्माणिज्जहि सयल वि नायर | भमहिं महल्लय कय-बहु-वग्गण ।
पढहिं दाण-हरिसिय-मण मग्गण ||१३||१६७६।। इय निय-पुरि राइण गुरु-अणुराइण विरइउ पुतह जम्मछणु । अह वाइउ कित्तिउ परभवि तित्तिउ विहिउ जेण
जिण-पय-नमणु ||१४||१६७७|| जं गब्भ-गए देवी-सुयम्मि नयराओ निग्गया सुहिया । तत्तो निग्गयसुहिउ ति तस्स पिउणा कयं नामं ।।१५।।१६७८।।
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