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________________ ૨૬૧ सुमइनाह-चरियं पूरिय-समग्ग-मग्गण-मणोरहा रइय-चारु-नेवच्छा । पेच्छामि अगालच्छणमुज्जाणे विहरमाणा हं ।।८||१६७१।। तो नरिं दिण गरुय-नेहेण संपाडिय दोहलय, उचिय-कालि सा पुत्तु पसवइ ।। विलसंत-तेयप्पसर पहय-तिमिरु पुन्व व्व दिणवइ । तं निसुणिवि नरवइ हुयउ हरिसाऊरिय-काउ | सुय-जम्मिण जणु हरिसियइ इयरु वि किं पुण राउ ||9||१६७२।। ठांवि ठांवि वर-मंच रइज्जहिं । . पहि पहि मुत्तिय-सत्थिय दिज्जहिं । घरि घरि वंदणमाल निबज्झहिं । पगि पगि कप्पूरागुरु डज्झहिं ||१०||१६७३।। हट्टसोह सव्वत्थ वि किज्जइ । गयण-विलग्ग पडाय ठविज्जइ । रायमग्ग कुंकुम-रसि सिच्चहिं । कामिणी पीणपओहर नच्चहिं ||११||१६७४।। वज्जहिं तूर सद्द-भरियंबर | पविसहिं अक्खइवत्त निरंतर । पउर पढंत छत्त परिवारिय । नयरुज्झायई ति य निवारिय ||१२||१६७५।। असण-वसण-तंबोलिहिं सायर । सम्माणिज्जहि सयल वि नायर | भमहिं महल्लय कय-बहु-वग्गण । पढहिं दाण-हरिसिय-मण मग्गण ||१३||१६७६।। इय निय-पुरि राइण गुरु-अणुराइण विरइउ पुतह जम्मछणु । अह वाइउ कित्तिउ परभवि तित्तिउ विहिउ जेण जिण-पय-नमणु ||१४||१६७७|| जं गब्भ-गए देवी-सुयम्मि नयराओ निग्गया सुहिया । तत्तो निग्गयसुहिउ ति तस्स पिउणा कयं नामं ।।१५।।१६७८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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