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सुमहनाह-चरियं
कय-परिवेढो चल्लइ तूर - निनाएण पूरिय- दियंतो । आनंदिय-सयल - जिओ जिणिंदचंदाण पवर- बली || १६४७।।
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बलि- पविसण - समकालं पुव्वद्दारेण ठाइ परिकहणा । निउणं पुरओ पाडण - अद्धद्धं अवडियं देवा ||१६४८ || अद्धद्धं अहिवइणो अवसेस होइ पागयजणस्स । सव्वामयप्पसमणी कुप्पइ नऽन्नो वि छम्मा || १६४९|| उडिऊण भयवं कमलायरो व्व महुयरेहिं चउव्विह-सुरेहिं परिगओ गओ उत्तर- दुवारेण ईसाण-कोणे कणय - रयण-सालंतर- डिए देवच्छंदए निसन्नो मणिमय- सिलावट्टए ।
अह पहुणो पयवीढे विणिविडो पढम - गणहरी चमरी । नव-जलहर - महुर- सरेण देसणं काउमारद्धी ||१६५०||
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जओ
खेय - विणोओ सीस-गुण-दीवणा पच्चओ उभयओ वि । सीसायरिअ-कमो विय गणहर कहणे गुणा होंति || १६५१ || रावणीय-सीहासणे निविट्ठो य पायपीढम्म | जेट्ठो अन्नयरो वा गणहारि कहेइ बीयाए ||१६५२ || संखाईए वि भवे साहइ जं वा पुरो उ पुच्छिज्जा । नणं अणाइसेसा वियाणई एस छउमत्थी ||१६५३ || भणियं चं भयवया गणहरेण संजमसिरी-कुलहरेण । सयल - सुरासुर - किन्नर -नर-संकिन्नाइ परिसाए || १६७४ || भो भो भव - पारावार - पार - गमणम्मि कयमणा तुभे । सेवह उवएस-पयाइं पोयभूयाई एयाई || १६५५ ।। तहाहि
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