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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं
अह साहइ सागरओ- 'तुमम्मि जीवियसमे अवत्तव्वं । अन्नं पि मह न किंचि वि, विसेसओ एस वृत्तंतो ||१००६|| जाणइ इमं वयंसो जं महिला कारणं अणत्थाणं । हिंस व्व सव्व - दुक्खाण अंधयाराण रयणि व्व ।। १००७।। अह जंपइ वरदत्तो - 'किं कुडिलगईए वियडभोगाए । महिलाए भुयंगीइ व कीए वि हु संकडे पडिओ ? || १००८ || तो जंपइ सागरओ कारिमलज्जो अहं जिणमईए । पयडिय - -मयण-वियारं सुइरं असमंजसं भणिओ || १009 || सयमेव लज्जिऊणं कयाइ विरमिस्सई इमा मूढा । इय चिंतंतेण मए उवेक्खिया एत्तियं कालं ||१०१०||
नवरं दिय दियहे असइत्तण-समुचिएहिं वयणेहिं । भणइ ममं, न य विरमइ असग्गहो अहह महिलाणं || १0११||
अज्ज तुह दंसणत्थं गओ गिहं मित्त ! रक्खसीए व्व । रुद्धो अहं छलन्नेसिणीए सहसा जिणमईए ||१०१२ || हरिणो व्व वागुराओ "गरुयाओ तग्गहाओ अप्पाणं । कहमवि विमोईऊणं भीयमणो एत्थ पत्तो हं ॥ १०१३ || तो चिंतिउं पवत्तो नणु जीवंतस्स नत्थि मे मोक्खो" । एईए सयासाओ ता अत्ताणं हणेमि अहं ||१०१४ | |
एयं पि न जुत्तं जं एसा मित्तस्स अन्नहा कहिही । मित्तो य मह परुक्खे तह त्ति तं मन्निही सव्वं ||१०१५ || अहवा कहेमि सव्वं मित्तस्स जहद्वियं इमं जेण । न लहेइ सो अवायं एईए अकयवीसासो ||१०१६ || एयं पि न जुत्तं चिय जं एईए अपूरियासाए । दुस्सीलत्तण- कहणं खयम्मि सो क्खार - 1 एवं विचित्त - चिंता - पवन्न-चित्तो तए अहं दिहो । उव्वेय-कारणमिणं मुणसु तुमं मह महासत्त ! ||१०१८ || अह तस्स पावमित्तस्स वयणओ उल्लसंत-रोसभरो । सो असमिक्खियकारी वरदत्तो निय-गिहं पत्तो ||१0१९||
र- निक्खेवो ॥१०१७।।
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