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________________ सुमइनाह-चरियं पुत्तम्मि समारोविय - समग्ग-भारो भवे नरो विरिणो । लीलाय च्चिय सग्ग-मग्गमोगाहए पच्छा ||११३१|| उक्तं चअपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गे नैव च नैव च । तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा पश्चात्स्वर्गं गमिष्यति' ||११३२ || कुमारेण भणियं 'जइ वंस - समुच्छेओ होइ तओ किं विणस्सइ नरस्स 21 निय - सुकय- दुक्कयाइं सुह- दुक्ख - निबंधणं ज़म्हा ||११३३|| जइ होज्ज कयं सुकयं तो सुरलोयाइ- संपयं पत्तो । पुरिसो अच्छिन्न- सुहं भुंजइ उच्छिन्न-वंसो वि ||११३४ || अह हुज्ज दुक्कयं पुव्व-निम्मियं तेण दुग्गइ - गमिओ । दुक्खं चिय अणुभुंजइ पवड्डुमाणे वि वंसम्मि ||११३५|| जा अप्पणा कएहिं वि ठविज्जए सुचरिएहिं पुरिसेण । कुसलेहिं सलहिज्जइ स च्चिय कित्ती न उण सेसा ||११३६ || न य कित्ती सुगइ - निब्बंधणं जओ दुक्कयाइं काऊण । गिज्जंत- कित्तिणो वि हु अहर गई जंतुणो जंति ||११३७|| धम्मद्वाणाणि सयं कारविउं विढविऊण पुन्नभरं । सुगइं गच्छति नरा तत्थ य सुवखाइं भुंजंति ||११३८ || जे उण पावा भजंति अवर - विहियाई धम्मट्ठाणाई | ते पावभरकंता कुगई वच्चंति दुह - बहुलं ||११३१|| न य दुज्जण-भज्जतेहिं धम्मंडाणेहिं सुगइ - ठाणाओ । पावंति परिब्भंसं जीवा तक्कारिणो कह वि ||११४०|| जं सयमेव विइन्नं तं चिय उवभुज्जए पर - भवम्मि | जं पुत्त-दत्त-भत्तेण होइ तित्ति त्ति तं मिच्छा ||११४१ || दूरत्थो जीवंतो वि अन्न दिन्नं न पावए अन्नो । - जं पुण मयस्स तित्ती पुत्त-विइनेण तं कह णु ||११४२ || पुत्तारोविय भारो वि अकय-सुकओ कहं लहइ सग्गं । अ- पयारं कम्मं रिणं वहंतो कहं विरिणो ? ||११४३ ॥ Jain Education International १८७ -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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