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________________ १८८ पुत्त-मुह - दंसणे जइ सुकए अकए वि लब्भए सग्गो । ता बहुपुत्ताणं भुंडि - सुणहि पमुहाण सो सुलहो ||११४४|| सग्गो न होइ पुत्तेण अवि य पुत्तो हणेइ निय-पियरं । सत्तू वि होइ पुतो नायमिह समुद्ददत्त - कहा ||११४५|| कमलावईए भणियं - 'का सा समुद्ददत्त - कहा ? 1' कुमारेण भणियं सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं - 13 - 'अत्थि इह तामलित्ती नयरी निय-रिद्धि-लद्ध - वर- कित्ती । पासाय- रयण - दित्ती- पयासियासेस- ३" दिस-भित्ती ॥११४६ || वत्थं चिय वसणं जत्थ अविहवो कामिणी जणो चेव । गोवाल - बालय च्चिय पर दोहपरा न सेस - जणी ||११४७।। तीए समुद्ददत्तो वणिओ अविवेय-कुलहरं रिद्धो । तरस य मायाबहुला बहुला नामेण वर-भज्जा ||११४८|| ताण महेसरदत्तो पत्तो दक्खिण्ण- दाण-संजुत्तो । तरस य लायन्नामय-तरंगिया गंगिला भज्जा ||११४९|| सो वि हु समुद्ददत्तो लोहवसावेस- विगय चेयन्नो । माया - पवंच - बहुलो परलोय-परम्मुहो संतो ।।११५० ।। संतोस - वज्जिओ कुणइ बहुविहे दविण-अज्जणोवाए । रक्ख धणं न कस्स वि वियरइ न य भक्खइ सयं पि ||११५१ || मग्गिज्जंतस्स परेण तस्स सत्तहि मुहेहिं एइ जरो । दितं परं पि पिच्छंतयस्स सिर-वेयणा होइ ||११५२ || अह अन्नया कयाइ पुरिसेणेक्केण दीण वयणेण । भवणंगणे निसन्नी समुद्ददत्तो इमं भणिओ ||११५३|| Jain Education International भद्द ! अहं भद्दिलपुर वासी वाणिय-सुओ निय- घराओ । निक्खंतो संतर- दंसण- कोऊहल-वसेण ॥११५४ || अच्छरिय-सयाइन्नं सर-सरि नग-नगर-गाम-रमणिज्जं । पुहविं परिब्भमंतो पत्तो इह दिव्व-जोगेण ||११५५ || एत्तो य रायपुरिसा रोसंधा जम-भड व्व निक्करुणा । तक्करमेक्कं गाढं कयत्थमाणा मए दिट्ठा ||११५६ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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