SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) पुरुषसिंह नाम दिया जाता है । क्रमशः कुमार युवास्थाको प्राप्त होता है । एकदा कुमार ने वधनिमित्त ले जाते हुए चोर को दयाके कारण छुडवाया । राजाने उसे उपालंभ दिया । अपमान समझकर कुमार गृहत्याग कर देता है । परिभ्रमण करता हुआ कुमार श्रीपुर नगर पहुँचता है । वहां के राजा पुरंदरकी पुत्री चंद्रलेखा पुरुषद्वेषिणी थी, किन्तु कुमार को देख उसे प्रेम करने लगी । कुमार द्वारा राजहस्ती को वश करने के पराक्रम को देखते हुए राजा ने उसके साथ चंद्रलेखा का विवाह कर दिया । तत्पश्चात् पुरुषसिंह कुमार अनेक नगरोंमें घुमता हुआ, अनेक पराक्रम करता हुआ, अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह करता है— सिंहपुर नगर - सिंहविक्रम राजाजयावली देवी की कन्या मदनलेखा, कंचनपुर नगर - राजा वैरसिंह - रानी नयनावली की राजकन्या कनकावली, विजयपुर नगर- अरिदमनराजा - जय श्री रानी की कन्या रत्नावली, हस्तिनापुरनगर - नरसिंह राजा - विलासवती महारानी की पुत्री राजकन्या लीलावती, मदनपुरनगर-विद्युत्वेग विद्याधर राजा - विद्युन्मालिका रानीकी कन्या कमलावती, पोतनपुर नगर- श्रेष्ठ राजा- सौभाग्यसुंदरी रानी की पुत्री सौभाग्यमंजरी इस तरह अनेकों कन्याओं को प्राप्त करके अंतमें विद्याधर सैन्य के साथ युद्ध करके रत्नपुर नगर की रत्नमंजरी नामक कन्या का पाणिग्रहण करके, पिता विजयसेन द्वारा भेजे गए पुरुषों के प्रयत्न से शंखपुर नगर पुनः आया और प्रियाओं के साथ अनेकविध विनोदों से अपना समय पसार करने लगा । यहां पर प्रहेलिका प्रश्नोत्तरादि का विशद वर्णन (पृ. ११६ - १२२) दिया गया है । प्रस्ताव ५ (पृ. १२५ - २१४) -- इसी मध्य विनतानन्द और विनयनन्दन नामक दो आचार्य पधारे। उनका मनुष्य जीवनमें आठ कर्मो के प्रभाव विषयक हृदयस्पर्शी व्याख्यान सुनकर पुरुषसिंह कुमारने महाव्रत ग्रहणका निश्चय किया, माता-पिताकी अनुमति ली और भार्याओं से निवेदन किया। उस समय एक के बाद एक भार्याने उनको अपनी बातका समर्थन करते हुए दृष्टांत के साथ यह आग्रह छोडने को कहा । कुमारने प्रत्येक दृष्टांत के विरुद्ध अपने दृष्टांत रखे। इस तरह इस प्रस्तावमें छोटी बडी १६ रोचक कथाएँ दी गई है - [ दुग्गय १ चिंतामणी २ चूय ३ कूयनर ४ ससुर ५ सूरसेण निवा ६ । वरदत्तो ७ जयवम्मो ८ कज्जो य ९ कुबेरदत्तो य १० ॥ १२७१। (१) दुग्गय — अक्का ११ समुद्ददत्तो १२जंबुग १३ मित्ततिय १४ अक्क १५ वणिपुसा १६ । भज्जाहिं कुमारेण य कहियाओ कहाओ एयाओ || १२७२ ॥ ] प्रियतमा चन्द्रलेखा द्वारा अधीरता के विषय में पुण्यहीन श्रावक की कथा (पृ. १३० - १३२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy