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________________ ( १६ ) पिंगलाक्ष नामक व्यंतर को असत्य कहकर उसके विरुद्ध उकसाया । व्यंतर के साथ राजाका युद्ध हुआ, शील के कारण राजाकी जीत हुई, व्यंतरने उसे चमत्कारिक महा हार और औषधि दी । आगे चलते राजा का रथनूपुरचक्रवाल नगर के विद्याधर चक्रवर्ती महेन्द्रसिंह के पुत्र मणिचूडके साथ मिलन होता है । प्रस्ताव २ (पृ. २५-४८)- मणिचूड अपने पूर्वभव की कथा सुनाता है । उनके साथ भी वैसी ही घटना घटी थी । विजयसेन और मणिचूड मित्र बन गये । राजाने मणिचूड को सुदर्शना की शोध का कार्य सोंपा । दोनों विमान विकुर्वित करके निकल पडे । प्रस्ताव ३ (पृ. ४९-६८) - इधर सुदर्शना का अपहरण करके क्षुद्र व्यंतरीने उसे भयंकर अटवी में छोड दिया । वहां उसे कायोत्सर्ग स्थित चारण श्रमण का दर्शन हुआ । उनके द्वारा धर्मोपदेश और पंचपरमेष्ठि मंत्र की प्राप्ति करके उसके प्रताप से वह निर्भय बनके आगे चली । हाथी पकडने के लिए वन में आया हुआ चक्रपुर नरेश सिंहराजा उसे अपने नगरमें ले जाता है, उससे बलात् विवाह करने का प्रयत्न करता है इसी बीच विजयसेन और मणिचूड वहां आ पहुंचते हैं । आत्महत्या करती हुइ राजकुमारीको विजयसेन बचाता है, सिंह के साथ उसका युद्ध होता है, सिंह को परास्त कर सुदर्शना के साथ विवाह करके मणिचूड द्वारा विकुर्वित विमानसे राजा विजयसेन स्वनगर में आ पहुंचता है । नगर में आनंदोत्सव मनाया जाता है । प्रस्ताव ४ (पृ. ६९-१२४) - जीवानंदसूरि नामक आचार्य का नगर में आगमन होता है । राजा द्वारा सुदर्शना के लिए प्रश्न पूछने पर आचार्य ने उसके पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाया । पूर्वजन्म में विजयसेन जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुशपुर नगर में दत्त नामक धर्मपरायण वणिक था, व्यंतरी उसकी पद्मा नामक कुशील भार्या थी और सुदर्शना उसकी भद्रा नामक धर्मिष्ठ भार्या थी । मुनि के उपदेश से विजयसेन और सुदर्शना को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और दोनों श्रावक व्रत का पालन करते हुए अनेकविध धर्मकार्य करने लगे । --- एक दिन उद्यानयात्रा के लिए राजा-रानी गए हुए थे तब रानी सुदर्शना को पुत्र न होने का दुःख हुआ । अविवेकी मंत्री द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए माणिभद्र नामक यक्ष को पशुबलि आदि चढ़ाने का सूचन हुआ, परंतु राजा द्वारा इनकार होने पर माणिभद्र यक्ष द्वारा अनेक उपसर्ग किये गये । किन्तु राजा निश्चल रहा । मतिसागर मंत्री द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्योपार्जनकी आवश्यकता समझा के पुण्योपार्जन के लिए धार्मिक उपायका सूचन किया गया । धार्मिक उपायों सें पुण्योपार्जन के कारण देवलोकसे च्यवित होकर रानी के गर्भ में एक देव का पुत्र रूपमें आगमन हुआ। वही भगवान सुमितनाथ का जीव था । पुत्र का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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