________________
૨૬૧
-
तं असण- पाण-ओसह-सयणासण-वसहि वत्थ- पत्ताइं । दायव्वं बुद्धिमया भवण्णवं तरिउकामेण || १७४५ || तं पुण देयं सज्झाय-ज्झाण-निरयरस चत्त- संगस्स जो तेण उवग्गहिओ तव संजम - भारमुव्वहइ || १७४६ ।। कम्म- लहुअत्तणेणं सो अप्पाणं परं च तारेइ । कम्मगुरुं अतरंतो सयं पि कह तारए अन्नं ।।१७४७।। तं दायग- गाहग-काल-भाव- सुद्धीहिं चउहिं संजुत्तं । निव्वाण - सोक्ख-कारणमणंतनाणीहिं पन्नत्तं || १७४८ || जो देइ निज्जरत्थी नाणी सद्धाजुओ निरासंसो । मयमुक्का जोग्गं जइजणस्स सो दायगो सुद्धो || १७४९ || जो देइ धेणु - खेत्ताइं जइजणाणुचियमेय विवरीओ । सो अप्पाणं तह गाहगं च पाडेइ संसारे ||१७५०|| जो चत्त- सव्व - संगो गुत्तो वि जिइंदिओ जियकसाओ । सज्झाय - झाण-निरओ साहू सो गाहगो सुद्धो || १७५१ || पुव्वुत्त-गुण- विउत्ताण जं धणं दिज्जए कुपत्ताणं । तं खलु धुव्वइ वत्थं रुहिरेण च्चिय रुहिर - लित्तं ॥१७५२ ।। सुन्नं (द्धं) सुहं पि दाणं होइ कुपत्तम्मि असुह-फलमेव । सप्पस्स जहा दिव्न्नं खीरं पि विसत्तणमुवेइ || १७५३ || तुच्छं पि सुपत्तम्मि उ दाणं नियमेण सुहफलं होइ । जह गावीए दिन्नं तणं पि खीरत्तणमुवे ||१७७४ || दिनेण जेण जइया जइजण देहस्स होइ उवयारो । भत्तीए तम्मि काले जं दिज्जइ काल - सुद्धं तं ।।१७५५ ।। काले दिन्नरस पहेणयस्स अग्घो न तीरए काउं । तरसेवाथक्क-पणामियस्स गिण्हंतया नत्थि || १७५६ || कालम्मि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । कालम्मि तहा दिन्नं दाणं पि हु बहुफलं नेयं ॥१७५७ ।। अप्पाणं मन्नंती कयत्थमेगंत - निज्जरा हेउं ।
जं दाणमणासंसं देइ नरो भावसुद्धं तं ।।१७५८।।
For Private & Personal Use Only
सुमइनाहचरियं
Jain Education International
-
www.jainelibrary.org