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________________ ३५६ सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं ता आसन्ने पडिओ मयच्छि ! जह मुच्छियाण विसएसु । एसो मच्चुमइंदो तह निवडइ जा न अम्हं पि || २४०७ || ता एय भएणं चिय पलाण मुणि-पहिय- पहय- मग्गेणं । वच्चामो मुक्खपुरं जत्थ पवेसो न एयरस || २४०८|| अह भणइ पिया- तुह घरे णिसिद्धमित्तत्थिणी गमह सच्चं । सिद्धमिहलोइय - सुहं अओ परं को इह पसंगो || २४०१ || नय सागरोवमेहिं वि हुंति वियण्हा सुरा वि विसयाणं । तम्हा संतो सो च्चिय निवारओ विसय-तण्हाए || २४१०|| ता नाह ! कुरु समीहियमहं पि सज्जा तुहाणुमय-मग्गा । पिय-पडिकूला वित्ती जओ निसिद्धा कुलवहूणं ||२४११|| तो भाइ नागदत्तो साहु पिए ! जंपियं तुमए । ता दिन्न - महादाणा जणिय- जिण-पडिम - पूयाई || २४१२ || घेत्तूण सव्व-विरइं गुरु-पाय- मूले, काऊण तिव्व-तवमंग- सुहाणंवेक्खं । पत्ताइं दोन्नि वि दिवं च सिवं च पच्छा, - निच्छिन्न- कम्म - दढ - संकल- बंधणाई || २४१३ || जीववहालिय-परधणहरण- नियत्तो वि मेहुणासत्तो । सत्तो वियाणियव्वो समत्त पावासवाचत्तो ||२४१४|| - अगणिय - कज्जाऽकज्जा निरग्गला गलिय- उभय- लोय-भया । मेहुण- प्रसत्त-चित्ता कं पावं जं न कुव्वंति || २४१५|| आवायमित्त - महुयर परिणामे दिन्न - तिक्ख- दुक्खभरा । को सेवए सकन्नी किंपाग फलं व विसय- सुहं ? || २४१६|| संदत्तं दोहग्गं इंदियच्छेयं सरीर-बल- हाणि । दुग्गइ - गइं च जीवा पावंति अबंभचेरेण || २४१७ || Jain Education International जो महिला संगेणं नियत्तिउं वंछए विसय-तण्हं । घय-भोयणेण अहिलसइ पसमिउं सो अजिन्न जरं ॥ २४१८|| जो सव्व-रमणि - परिहार- अक्खमो चयइ पर कलत्तं पि । पावइ उभय-भवेसुं सो रणसूरो" व्व कल्लाणं || २४१९|| तहाहि For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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