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________________ ३०६ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं वत्थ-विलेवण- तंबोल- कुसुम-पमुहो जणाण उवयारो । हरिस - विहवाणुरुवो विहिओ दोहिं पि पक्खेहिं ||२१२४|| वित्ते वीवाह - महे महंत -करि-कंधराधिरूढमिणं । संजणिय-जणाणंदं वहूवरं पविसइ पुरम्मि || २१२५ || तद्दंसण- कोऊहल - कलिय-मणो नयर-नारि-नर-नियरो | चडिओ गवक्ख - गोउर-घरसिर- पायारमंचेसु || २१२६ || जंपइ परोप्परमिणं विहिणो निम्माणं कोसलं सहलं । अज्ज अणुरूवमेयं वहूवरं जेण संघडियं ॥ २१२७|| किंतु वरो जो एसो अधीरदिट्ठी अणुद्धयाहारो । सो सज्झसवस - वसणावरिय तणू नज्जइ वहु व्व || २१२८ ।। जा उण बहुया सा धीर - लोयणा मेह- छन्न-तवणो व्व । तेय - पसरं वहंती "गरूयं लक्खिज्जइ वरो व्व || २१२९|| एवं पयंपमाणे नयर-जणे जणिय- मंगलायारं । सुर- मिहुणं व विमाणे वहूवरं निय-घरे पत्तं ॥ २१३०|| सूरं पयाव- जुत्तं कुमरं दहुं तिरोहियप्पाणं । जाओ सहस्सरस्सी तिरोहिओ हारिवडिउ व्व ॥ २१३१|| पसरिय - कुमुयामोए मयंक कर नियर - निहय-तम-विसरे । उल्लसिय-कामिणी-मण-मयण - प्पसरे पओसम्मि || २१३२|| - सव्वुत्तम कणयमयं मणि- कुट्टिम - मुक्क - सुरहि - कुसुमभरं । रयणपईव -सणाहं मयणाहि विलित्त - वर - भित्तिं ||२१३३ ॥ रइय-विचित्त-वियाणं पहंसुय - पिहिय-कंचणखंभं । विद्दुम- पल्लंक - निहित्त-हंसतूली- विरायंतं ॥ २१३४ || कलहो अमय - पडिग्गहमोलंबिय- मालईय-मउल - मालं । डज्झंतागरु-कप्पूर- पूर-परिमल-महग्घवियं ||२१३५|| घणसार-सार घण पूग पूग- तंबोल- वीडय - समेयं । वड्डय - सुरहि - विलेवण-संपन्न - सुवन्न- कच्चोलं ||२१३६|| कहमेएसिं रइसुह- समागमो वेस - पिहिय-पयईणं । होहि त्ति कोउगेण व कलियं पारावय - कुलेणं ||२१३७|| For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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