SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org बवाना कहायो। निर्वाणाच समस्यातार समूहाला हा सावकः श्रीस निवेंद्र पर श्रीमानादनुशिष्य प्यार जित दिवइति सिद्धः॥ सूरिः स मय्गु रन्न नित्य तदाप्रीतिय दे कि मालमुनिगरा जिरास्यादित तर सात रसा ||| १ श्री दिवस रिश्मुखावद व राज्य पितत्पा दया या जे हे मागायाम वा धारविरचितीन नालीक मत्री मुमाततान ॥वि शारदशिरा माण रजित दिवम् रिमालाविनयतिलाको सव द्विजयसिंहस रिशुद्धिः ॥ जगत्र्यविजन निर्विमलशीलवूम तव्यात दिनकदाचन स्मरश रिर्यदीयमन ॥४॥ गुरास्त्रस्य यदी लाज सादान्मदधीरपि॥श्रीमान् सामपसाचा घ रिजसुमति॥ प्राग्वाटराचयमा गरि रसम प्रज्ञः समी वाग्मीसूक मुनिधानमज्ञनिश्री पालनामा मान्याला कातर काव्य रेजिनमतिः साहित्यविद्यारतिः॥ श्री सिद्दाधि पति: के वीडतिल कुत्ता तितिव्याहरन् ॥ ६सनुसाऊ मारपाल प्रतिप्रीतिः पधीमता मुसके विचक्रम स्त्रकमाए : श्री सिपाला नवे तु । यया लाक्पारा पकारक रु ला सोजन्य सन्मादाहि रामः कलिने कुलि रचत युगार सजानामन्यात् ॥ तस्य मधशालाया एाहिलपाटाका निष्यूहमिदा परमा समर्धित॥ नालागा चिकिमपिमतिविकल्पवरातः। कुनामा स किन स्मृतिविरहादा किमया साधा सूत्रे शास्त्रय दिहकिमपि प्राक्क्रम खिल क्षमताधी मसूद समद्या ह्रदया।।। पायसहस्रशत ६२२ ॥ ॥ इतिसुमतिनाधचरित्रं समन्ते ॥ ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ ॥ श्री ॥ ॥ विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद की हस्तप्रत का अंतिम पत्र
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy