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सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं ते वि असंखुद्ध - माणसं रायाणमागच्छमाणमालोइऊण 'एसो अप्पडिहयप्पहाव - भयंकरो को वि पुरिसो, एयस्स नव- मेह- लेहा-लसंतविज्जुल्लयालोय - दुरवलोया दिडी, पलय - काल - मायंड - मंडल - पहा - पसर - दूसहा तेय - लच्छी, कुविय - कयंत" - कडक्ख - च्छडाडोव - दुद्दंसणा "निसियासिलडी । ता पलायम्ह पलायम्ह' त्ति पलवमाणा पलाणा ।
राया वि तहेव गंतुं पयट्टो । पुणो वि तालतरु-तुंग-जंघं, जमदंडचंडिमुब्भड - भुयं, जलण-जाला - पलित्त- फाल- फार जीहं, पलयकालदिप्पंतानल - फुलिंग-पिंग-लोयणं, चिबिड - वंक - फोक्क-नासं, तडितंतुभासुर - सिरोयरुद्धमुद्धदेसं हिमकर कला कुडिल-दाढा "करालविरलिय - मुह - कु हरं, उब्भड - भिउडि- भीसण - भालवहं, सुराभंडपलंबोयरं, मसि - महिस-मासरासि - सन्निगासच्छविं अविरल - विगलंतरुहिर - धारा-बीभच्छ-मयगलऽच्छ-विच्छाइअंगं, फार-फुंकार -मुक्क विसकणुक्केर कन्ह- पन्नग पिणद्ध-चमूरुचम्म निवसणं विसमुन्नयपंसु [लि]यंतर- पसुत्त सरड सरीसिवं, कसिण सप्प-कय-कन्नपूरं, वाम - कक्ख - निक्खित्त- मणुय-मडयं, वाम-कर- कलिय- कवाल - द्वियसोणियाssसव - वसा-पाण-लालसं, गल- पलंबमाण - नरमुंडमालं, दाहिणक रुग्गीरिय-गरुय-करवालं, घोरट्टहास - पूरिय- दिसाचक्कवालं, पावपुंजं व मुत्तिमंतं, कयंतं व रूवंतर - परिणयं, 'अरे रे ! हीणसत्त ! पुरिसाहम ! महा - सुहडवाय-गव्विर ! पलायसु पलायसु ममं वा सरणं पवज्जसु, अन्नहा नत्थि ते जीवियं' ति पयंपमाणं पिसायं पासइ | गरुय-सत्तयाए य तं अवहीरिय राया जाव तहेव परिसक्कइ तो पुणो वि भणिउं पयट्टो- अरे दुन्नय-निहाण ! निहीण- पुरिस-पोरुसाभिमाणविनडिय ! न गणेसि मह वयणं ?'
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तओ ईसि हसिऊग कुंददल - धवल - दंतपंति - पसरत-किरणुक्केर - विद्धंसियंधयारेण राइणा" भणियं- 'अहो निसायर ! सत्तगुण- रयणसायर ! तुममेव पुरिसुत्तमो जो जीवियमविक्खमाणो माणुसमेत्तस्स वि न मे समीवमल्लियसि, दूर-देस-डिओ चेव वग्गसि, अहं च आजम्मं न सिक्खिओ कुओ वि पलाइउं, न याणामि कस्सइ सरणं वा पवज्जिउं, ता कहं पलायामि ? कहं वा तुमं सरणं पवज्जामि ? ।'
पिसाओ वि 'अरे दुस्सिक्खिय ! कुविय कयंत कडक्खिय ! ममं
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