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मरगय-सिलायलुल्लसिय-किरण-जालाई गयण - लग्गाई । जम्मि रवि-रह- तुरंगा लिहंति हरियंकुर भमेण || २१७८||
सुमइनाह-चरियं
तत्थ वित्थिन्न - रयण - खंड - खचिय-खंभ-संभव- पहा- पहयंधयारपसरं पसंडि-पासायं आरोविऊण 'सामि ! एस अम्हेहिं सलिलोवरि तरंतो पत्तो महाभागो 'त्ति भणतेहिं मुक्को अणेग - विज्जाहर परिगयस्स पुरओ वाउवेग - विज्जाहरस्स । तेणावि ससमंभममब्भुहिऊण आलिंगिओ गाढं, निवेसिओ पवरासणे भणिओ य- भद्द ! गुणंधर ! सागयं ते । तओ कहमेसो ममं जाणइं त्ति विम्हय - खित्त - चित्तेण वृत्तं गुणंधरेण- सागयं तुम्ह दंसणेण | आणत्तो निय-परियणो खयरेसरेण करेह न्हाणभोयणोवयारमेयस्स । कमल-कोमल-करयलेहिं खयरगणेहिं गुणंधरो अब्भंगिओ गंध - तिल्लेहिं सुगंध - दव्वेहिं उव्वट्टिऊण, हविओ कणग- भिंगार- मुह - विणिग्गय-गंधोदएहिं । नियत्थ-पसत्थ- वत्थो वित्थिन्न - मंडवे वाउवेग - विज्जाहरेण सह दिव्व रसवईए भोत्तुमादत्तो ।
एत्थंतरे तिरिच्छच्छि-विच्छो हेहिं समुच्छलंत-मच्छ रिंछोलि - छाइयं पिव दिसिचक्कं गुणंती समागया गयण - गामिणी मणिमयालंकारकिरण - करंबिय - भवणब्भंतरा तत्थ विज्जुलेहा कन्नगा । सा य भुंजंतस्स निय - बंधुणो वाउवेगस्स समीवे हत्थ साडयं गहिऊण ठिया । दिट्ठो तीए गुणधरो अच्चंत सुंदरागारों त्ति गरुय-1 - विम्हिय खित्त-चित्ताए पुणरुत्तं पलोईउं साहिलासाए दिट्ठीए चिंतियं च
तइलोक्क - तिलय - भूयं रूयं दहुं इमस्स मयणो वि । लज्जाए विलीण-तणू नूणमणंगत्तणं पत्तो ॥ २१७९|| -
गुणधरो वि विज्जुलेहा -लावन्नावलीयण-परव्वसी मयणसरसल्लिय- मणी चिंतिउं पवत्तो- अहो ! चंगिमा अंग-सन्निवेसस्स । अहो ! महुरिमा मुहकमलस्स । अहो ! लवणिमा लोयणाणं ।
चिइ सइ सन्निहिया किं विज्जादेवया इमा का वि ? | विज्जाहरेण इमिणा सत्तेण वसीकया संती ? ||२९८०
जइ पुण अणन्न - सरिसं रूवमिणं होज्ज माणुसीणं पि । ता सुरलोय - निमित्तं मुहा किलिस्संति मूढमणा ||२९८१|| इच्चाइ चिंतयंतो कय-भोयणो कर - कलिय- तंबोलो खयरेण समं
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