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________________ १०२ सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं भणियं अणेण हत्थिणपुराओ पोयणपुरम्मि चलिओ म्हि । कुमरेण तओ भणियं तत्थ तुमं केण कज्जेण ? ||६६१ || तो मागहेण वृत्तं तुमए पयडं पि किं न मुणियमिणं ? | कुमरो पयंपइ तओ किं तं ? अह बंदिणा भणियं ||६६२ || भद्द ! सुण एत्थ पोयणपुरम्मि पुरिसोत्तमस्स नरवइणो । सोहग्गसुंदरीए देवीए गब्भ - संभूया || ६६३॥ सोहग्गमंजरी नाम कन्नया अंग- चंगिम - गुणेण । रइ-रंभ - रूव - पयरिस-संरंभ-निरंभण-पवीणा ॥ ६६४॥ जीए निम्मल - मुह-कमल- कंति - कवलिय- समग्ग- सोहग्गी । सकलंको लज्जाइ व चंदो संचरइ रयणीए ||६६५ || जीए लोयण - 100 लावन्न - लच्छिमवलोइउं व अब्भहियं । लज्जावसेण नीलुप्पलाई सलिले निलुक्काई ||६६६ || तीए य कला-कलाव-कोसल्ल- समुल्लसंत- गत्ताए कया पइन्ना'जो मं वीणा - विणोएण जिणइ सो चेव मं परिणेइ' त्ति । तओ राइणा काराविओ सयंवरा मंडवो, हक्कारिया सव्वे वि रायतणया । अहं प कोउगवसेण तत्थेव पयट्टो । कुमारेण भणियं— जइ एवं ता अहं पि तुम समं गंतूण पेच्छामि १०१ अच्छेरयमिणं । तओ बंदिणा 'किमजुत्तं ?' ति भणंतेण भणियं - 'कुमार ! उवलक्खिओ मए संखउर - सामिणो महाराय - विजयसेणस्स नंदणो पुरिससीह कुमारी तुमं ति । कुमारेण य लज्जोणय- वयणेण दिव्न्नं कडय-जुयलं बंदिणो । तओ चलिया दो वि पत्ता पोयणपुरं । जं च कंचन - घडिय - पायार, पुरिसत्थ- वित्थरणपर, - पुरिससत्थ- संचरण-मणहरु हरिणच्छि संकुलु, विउल - वावि - कूव - आराम- सरवरु | जहिं सुरघर - गणु गरिम-गुण-संभिय-रवि-रह- मग्गु । फलिह - सिहर-किरणावलिहिं सहइ हसंतु व सग्गु ||६६७ || तेय दो वि हु तत्थ पेच्छति— नीसेस - दोसागयह रायसुयह बहु- रिद्धि - डंबर | आवास पइ पवर-पवण-1 - विहुय - धय-चुंबियंबर ||६६८|| For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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