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________________ सुमइनाह-चरियं सव्वविरइरस रूवस्स साहुधम्मस्स जं अवेक्खाए । देसेण एत्थ विरई अओ इमा देसविरइत्ति || ३६ || एसा य साहुधम्म-प्पासायारोहणाऽसमत्थेण । सेवेयव्वा सड्डेण पढम-सोवाण-सारिच्छा ||३७०|| पुव्व - परिकम्मिया चित्तकम्म जोग्गा जहा भवे वित्ती । एयाए कयब्भासो मुणिधम्म-खमो तहा होइ ||३७१|| भणियं च एसा य देसविरई सेविज्जइ सव्वविरइ - कज्जेण । पायमिमीए परिकम्मियाण ईयरा थिरा होइ ||३७२ || देसविरई - पवनेण विसय - विवसत्तमप्पणो मुणिउं । काव्वो विबुहेणं बहुमाणो समणधम्मम्मि ||३७३|| धन्ना ते च्चिय मुणिणो बालत्ते वि हु पवन्न-सामन्ना । आजम्मं दुव्वहमुब्वहंति जे बंभचेरभरं ||३७४। कइया संविग्गाणं गीयत्थाणं गुरुण पयमूले । कय- सव्व-संग- चाओ चारित-धुरं धरिस्सामि || ३७५ || वज्जिय-कुसमय - कुसुमो जिणमय-मयरंद- पाण- तल्लिच्छो । कइया गुरु- पयकमले छप्पय लीलं विलंबिस्सं ||३७६ || पंचसमिओ तिगुत्तो जिइंदिओ जिय- परीसह कसाओ । ३पवणो व्व अपडिबद्धो कइया सव्वत्थ विहरिस्सं ||३७७।। 'कत्थाऽऽगओ सि ? अज्ज वि सिज्झइ रे मुंड ! वच्च घर-बाहिं । इय धिक्कारिज्जतो कइया भिक्खं भमिस्सामि ||३७८|| Jain Education International - कइया पडिम-पवन्नो थंभो व्व थिरो पलंब - भुयजुयलो । वसह-परिघट्टणं नयर चच्चरे हं सहिस्सामि ||३७९ || इच्चाइ मणोरह - कुसुम-मालियालंकिओ गिहत्थो वि । सुहगो व्व कडक्खिज्जइ कमेण चारित्त - लच्छीए ॥३८०|| इच्चाइ धम्म- कहं कुणमाणी मुणिंदो पुट्ठो नरिंदेण - भयवं ! सुदंसणा देवी केण सुन्नाऽरख्न्ने पक्खित्ता ? किं वा विरोह - कारणं तस्स ? | गुरुणा भणियं सोम ! सुण ॥ - ૬૭ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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