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________________ ४६ सिरिसोमप्पहसूरि - विरइयं तो रन्ना वागरियं अहं खु संखउर-नयर - वत्थव्वो । विवरीय - सिक्ख - तुरएण अवहडो एत्थ संपत्ती || २४४ || भणियं मणिचूडेणं अणन्नसम- लक्खणेहिं लक्खेमि । सयल - जय-पयड- कित्ती नूण तुमं विजयसेण निवो ॥ २४५|| ता वसणं पि हु एयं महूसवो मज्झ जेण संजाओ । तुम सह संबंधो गुण निहिणा पुरिस- रयणेण ॥२४६ || एत्थंतरे संवुत्ता संझा, कय-तक्कालकिच्चा पसुत्ता दो वि रयणपल्लं केसु । पहाया रयणी, विरलीभूयमंधयारं, जायाइं विविहविहंगकुल- कोलाहल संकुलाई दिसा मंडलाई । - आसन्न - दिणेसर-दइय-संगमा अरुण पयडियारुणिमा । कुंकुम - कयंगराय व्व रेहए पुव्वदिस वहुया ||२४७|| चिर रुदं दिणवइ - दइय- दंसणूससिय-कमल-वयणाण | नीरइ कमलिणीणं भमरउलं सोय- तिमिरं व ॥ २४८॥ ― Jain Education International घण - तिमिर-पंक- खुत्तं समग्ग-1 -भुवणं पलोईउं रविणो । सव्वत्थ वि वित्थरिया करा समुद्धरिडंकामरस ||२४|| पबुद्धो राया, कय-गोसकिच्चो भणिओ मणिचूडेण- 'संपयं महाराय ! देहि‍ ममाएसं, जेण दुल्लहं पि संपाडेमि । तओ सुदंसणाए गवेसणं काउकामेण भणियं रन्ना- भद्द ! नाणाविह देस- दंसणम्मि मे महंत कोउगं । ता तह करेसु जहा तं संपज्जइ । तओ तक्खणा मणिचूडेण विउब्वियं विउल-मणि-तोरण-किरण- पुंज - पिंजरिय-गयणंगणं, अणेग - खंभ-सय- सन्निविड- रयण "सालभंजियाभिरामं रणंत-कणयकिंकिणी - जाल- मुहलं विमाणं । समारुहिऊण तम्मि चलिया दुवे वि । For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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