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सिरिसोमप्पहसूरि- विरइयं
दहूण अविवेय- बहुलयाए जोव्वणस्स चंचलयाए इंदियगामस्स, तुच्छयाए इत्थी - सहावस्स, अगणिय- गुरुयण - लज्जाए, अकलियकुलकलंकार, अविभाविय - उभय-भवदुहाए पेसिया साहिलासा दिट्ठी रोहिणीए । निज्झाईओ सुइरं वणिय पुत्तो । लक्खियमिणं भिक्खानिमित्तं तक्कालं गिहागएण सीलसार-मुणिणा । जओ
जइ वि न समइ न जंपइ निहुयं झाएइ हियय - मज्झम्मि । मयणाउस्स्स दिडी लक्खिज्जइ तह वि लोएण || २७३८ ।। जं सविलासा दिडी जं सज्झसवस विसंठुला वाणी । सेय - जल - बिंदु - संदोह - दंतुरं जं नडालयलं ॥ २७३१||
जं दंसिय-थणवहं पुणरुत्तं उत्तरिज्ज-संठवणं ।
जं मयण - केलि - वावी - सणाहि नाहीइ पाडणं || २७४०|
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जं असिटिल-केसकलाव-बंधणं उल्लसंत-भुय-मूलं । तं लक्खिज्जइ रमणीण को वि चित्ते चहुट्टो ति || २७४१ || अहो दुज्जओ मयण-पसरो त्ति चिंतंतो निग्गओ सीलसार मुणी । कमेण अहिगय- समत्त सुत्तत्थो ठविओ गुरुणा सूरिपए । गामागरनगरेसु विहरंतो आगओ कुसउरे । निग्गया नागरा । नमिऊण निसन्ना पुरओ । पारदा धम्म- कहा गुरुणा । पडिबुद्धा बहवे जणा । पणमिऊण भणियं रोहिणीए - भयवं ! देहि मे सम्मत्तं ।
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गुरुणा भणियं पुव्वं अइयारालोयणं कुणसु भद्दे !! भवजलहि- पोयभूयं पच्छा पडिवज्ज सम्मत्तं || २७४२ || जह सुविसुद्धे कुड्डे लिहियं चित्तं विहाइ रमणिज्जं । तह निरइयार - जीवे सम्मत्तं गुणकरं होइ || २७४३|| जह लंघण - हणिय- रसस्स रोगिणी ओसहं गुणाय भवे । आलोयणा - विसुद्धस्स धम्म-कम्मं तहा सयलं ।। २७४४ ।। एवं सोऊण इमा आलोयइ बालभावओ विहियं । सव्वं चिय अइयारं दिहि-वियारं वि मोत्तूण || २७४५ || गुरुणा वृत्तं सम्मं आलोयसु तीइ जंपियं भयवं । किमसम्म ?, भणइ गुरु- वीसरियं किं तयं भद्दे ||२७४६||
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