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________________ (१०) श्रीदेवसूरि प्रमुख अन्य भी उनके चरणकमलों में हंस समान आचार्य हो गये, जिनकी निराबाध स्थिर सत्यपूर्ण मैत्री प्रमोद का विस्तार करती थी । ___विशारद-शिरोमणि अजितदेवसूरि-प्रभु के विनेयतिलक समान विजयसिंह गुरु हुए जिनके मन को विमल शीलरूप कवच से आवृत्त होने के कारण कभी भी तीनों जगत के विजेता कामदेव के शर भी भेद नहीं पाये थे। ऐसे गुरु के चरणकमल की कृपासे मन्दबुद्धि होने पर भी श्रीमान् सोमप्रभाचार्य ने सुमतिनाथचरित्र की रचना की। प्राग्वाटवंशरूप सागर की वृद्धि करने में चन्द्र समान, असाधारण प्रज्ञावाले, कृतज्ञ, क्षमाशील, वाग्मी, सूक्ति-सुधानिधि श्रीपाल नामक कवि हुए । उनके लोकोत्तर काव्यों से प्रसन्न, साहित्य और विद्या के रसिक श्री सिद्धराज इस कवीन्द्रतिलक को भ्राता समान मानते थे । उनके पुत्र कविचक्रमस्तकमणिरूप, बुद्धिमानों में अग्रणी, श्री सिद्धपाल हुए, जो कुमारपाल नृपति के प्रीतिपात्र थे । परोपकार, करुणा, सौजन्य, सत्य, क्षमा, दाक्षिण्य आदिसे युक्त उनको देख के लोक कलियुग में कृतयुग का आरंभ हुआ मानते थे । अणहिलपुर-पाटनकी उनकी पौषधशाला में रहते हुए यह परमार्थ-समर्थित चरित की रचना मैंने की है। कुछ अज्ञान के कारण, कुछ मतिमंदता के कारण, कुछ अति उत्सुकता के कारण और क्वचित् स्मृति दोष के कारण मैंने शास्त्र-विरुद्ध जो कुछ भी कह दिया हो, तो मुझे सब दयापूर्ण हृदयवाले बुद्धिमान जन क्षमा करें।" इस प्रशस्ति से दो निर्देश प्राप्त होते हैं (१) सोमप्रभसूरि चन्द्रगच्छ के आचार्यद्वय मुनिचन्द्रसूरि-मानदेवसूरि के शिष्य अजितदेवसूरि (जिनके गुरुबंधु देवसूरि-प्रसिद्ध वादिदेवसूरि थे) के शिष्य विजयसिंहसूरि के शिष्य थे। (२) प्रसिद्ध चौलुक्य राजा सिद्धराज जयसिंह के मित्र कवि श्रीपाल का पुत्र कवि सिद्धपाल राजा कुमारपालका मित्र था। उनकी पौषधशाला में अणहिलपुर पट्टन में रह कर सोमप्रभाचार्य ने सुमतिनाथचरित की रचना की थी। सोमप्रभाचार्य की दूसरी प्रसिद्ध रचना 'कुमारपालप्रतिबोध' की प्रशस्ति से भी यही तथ्य उजागर होते हैं । वहाँ पर कर्ता ने कुमारपालप्रतिबोध-अपरनाम जिनधर्मप्रतिबोध-का रचना समय विक्रम संवत १२४१ (ई. स. ११८५) बताया है। अर्थात् कुमारपाल के अवसान वर्ष वि. सं. १२३० (ई. स. ११७४) के ग्यारह वर्ष के बाद इसकी रचना हुई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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