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________________ ३७ सुमइनाह-चरियं एवं सिणेह-सब्भाव-गब्भं परोप्परं पयंपमाणाण मयण-धणदेवाण तत्थ समागओ समग्ग-सग्गापवग्ग-मग्ग-देसओ दसविह-सामायारीनिरओ निरयंध-कूव-निवडंत-जंतु-'संताण-ताणप्पयाण-हत्थावलंबो ४२विमलबोहो नाम सूरी । वंदिऊण जय-गुरुं जुगाइदेवं निविहो तत्थेव । मयण-धणदेवा वि निवडिया गुरुणो चलणेसु । निसन्ना तस्स पुरओ । भणिया य नाण-मुणिय-तच्चरिएण गुरुणा एवमकल्लाण-महल्ल-वल्लि-पल्लवण-सलिल-कुल्लाओ । निरयगइ-वत्तणीओ खणदंसिय-पेम-कोवाओ ||११५।। कवड-कुडुंब-कुडीओ विवेय-मत्तंड-मेहलेहाओ । परिहरह बालवालुंकि-वालकुडिलाओ महिलाओ ||१९६|| ४°आसु पसत्ता सत्ता विसयाऽऽमिस-लुद्ध-मुद्ध-मइपसरा । अगणिय-कज्जाकज्जा कुणंति पावाइं विविहाइं ||११७।। तव्वसओ संसारे चउगइ-परियत्तणाइं कुणमाणा । माणस-सरीर-गुरु-दुक्खभागिणो हुंति चिरकालं ।।१८।। ता भो महाणुभावा ! विसय-सुह-विरत्त-माणसा होउं । सव्व-विरई पव्वज्जिय समुज्जमह धम्म-कज्जम्मि ||१११।। कुणह कसाय-विणिग्गहमिं दिय-दुद्दम-तुरंगमे दमह । सेवह गुरुकुल-वासं उवसग्ग-परीसहे सहह ||२००।। जेण भवजलहिमुल्लंघिऊण जर-जम्म-मरण-कल्लोलं । सयल-किलेस-विमुक्वं निव्वाण-सुहं लहुं लहह ।।२०१।। एवं सोउं संविग्ग-माणसा दो वि मयण-धणदेवा । नमिऊणं मुणिनाहं जंपिउमेवं समाढत्ता ।।२०२।। भयवं ! भवंधकूवम्मि नूणमम्हाण निवडमाणाण । दिक्खा-हत्थालंबण-दाणेण अणुग्गहं कुणसु ।।२०३।। गुरुणा वि तओ दिन्ना दिक्खा ताणं पहिह-हिययाणं । तो सिक्खिय-मुणि-किरिया अहिज्जिया सेस-सुत्तऽत्था ||२०४|| कय-तिव्व-तवच्चरणा परोप्परं पणय-निब्भरा निच्चं । एक्व-गुरुवास-वसिया पज्जंते तह कयाणसणा ।।२०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001386
Book TitleSumainahchariyam
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorRamniklal M Shah, Nagin J Shah
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages540
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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