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पृष्ठ २१५ पर दिये गये विशेषार्थके स्थानपर निम्न विशेषार्थ पढ़िये
विशेषार्थ-किसी भी विवक्षित कर्मके बंधनेके पश्चात् सर्व कर्मस्थिति व्यतीत हो चुकी हो, केवल एक समय अधिक उदयावली प्रमाण कर्मस्थिति शेष रह गई हो, उस कर्मके अबशेष प्रदेशाग्र उत्कर्षणके योग्य नहीं हैं, क्योंकि किसी भी कर्मका कर्मस्थिति प्रमाण तक ही उत्कर्षण हो सकता है उसके आगे उत्कर्षण होना असंभव है । इसी प्रकार जिस कर्मकी केवल दो समय अधिक उदयावली प्रमाण कर्मस्थिति शेष रह गई,उस कर्मके प्रदेशाग्र उत्कर्षणके योग्य नहीं है । इस प्रकार एक एक समय बढ़ाते बढ़ाते हुए जिस कर्म बन्धकी केवल जघन्य अबाधामात्र कर्मस्थिति शेष रहगई है उसके प्रदेशाग्र भी उत्कर्षणके योग्य नहीं हैं। क्योंकि उत्कर्षण के लिए यह नियम है कि जो नवीन कर्मवध रहा है उसकी अबाधाको छोड़कर जो निषेक-रचना हुई है उन नवीन निषेकोंमें उत्कर्षण किया हुआ द्रव्य निक्षिप्त किया जाता है, नवीन बधे हुए कर्मकी अबाधामें निषेक रचना नहीं है अतः अबाधामें उत्कर्षण किया जाने वाला द्रव्य नहीं दिया जाता। किंतु पूर्व कर्मकी केवल जघन्य अबाधामात्र कर्मस्थिति शेष रह गई थी और वह जघन्य अबाधासे आगे अर्थात् अपनी कर्मस्थितिसे आगे उत्कर्पण नहीं हो सक्ता है अत. वह कर्म जिसकी कर्मस्थिति जघन्य अबाधामात्र शेष रह गई है उस कर्मके प्रदेशाग्र भी उत्कर्षणके योग्य नहीं हैं । जिस कर्मकी सर्व कर्मस्थिति व्यतीत हो चुकी है । केवल एक समय अधिक जघन्य अबाधाप्रमाण कर्मस्थिति शेष रह गई है तो उस कर्मके अन्तिम निषेकको छोड़कर शेष अबाधा निषेकोंका द्रव्य उत्कर्षण होकर, नवीनकी जघन्य अबाधाके ऊपर रचे गए, प्रथम निषेक दिया जा सकता है । इसीप्रकार एक एक समय बढ़ते बढ़ते जिस कर्मकी बर्ष, वर्ष पृथक्त्व प्रमाण, सागर या सागरपृथक्त्वप्रमाण कर्मस्थिति शेष रह गई है, उस कर्मकी शेष रही हुई स्थितिके सर्व प्रदेशाग्र उत्कर्षण के योग्य है । किन्तु उदयावली में प्रविष्ट . प्रदेशाग्र उत्कर्षण-योग्य नहीं हैं । उदाहरणके लिए मान लीजिए-किसी कर्मकी कर्मस्थिति ७० समय (७० कोडाकोडी सागर) है । ४ समय आवलीका प्रमाण है । १० समय जघन्य अबाधाका प्रमाण है। कर्मबंधके समयसे यदि उसके ६५ समय व्यतीत हो गये, केवल एक समय अधिक श्रावली (४+१=५) शेष रहगई है, (अथवा जिस कर्मकी एक समय अधिक उदयावली कम कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है) उस कर्मकी शेष रही हुई स्थिति (५ समयों) के निषेकोंका द्रव्य उत्कर्षण योग्य नहीं है। क्योंकि जो उस समय नवीन कर्म बंध रहा है उसकी जघन्य अबाधा १० समय है । किन्तु जिस कर्मकी स्थिति १० समयसे अधिक शेष रह गई है उस शेष स्थितिके प्रदेशाग्र उत्कर्षण-योग्य है, क्योंकि उसका द्रव्य जघन्य अबाधा १० समयसे ऊपर नवीन बधे हुए कर्मके प्रथम निपेकमें दिया जा सकता है ।
एम. एल. जैन के प्रबन्ध से सन्मति प्रेस, २०१६ किनारी बाजार देहली मे मुद्रित ।