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कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार १०७. तदो मोहणीयस्स पलिदोवमट्ठिदिगो वंधो। १०८. सेसाणं कम्माणं पलिदोवमस्स संखेजदिभागो ठिदिवंधो । १०९ एदम्हि ठिदिवंधे पुण्णे मोहणीयस्स ठिदिबंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो। ११० तदो सव्वेसिं कम्माणं ठिदिवंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो चेव । १११. ताधे वि अप्पाबहुअं । णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । ११२ णाणावरण-दसणावरण-वेदणीय-अंतराइयाणं ठिदिवंधो संखेज्जगुणो । ११३. मोहणीयस्स ठिदिबंधो संखेज्जगुणो। ११४. एदेण कमेण संखेज्जाणि ठिदिवंधसहस्साणि गदाणि ।
११५. तदो अण्णो ठिदिवंधो जाधे णामा-गोदाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ताधे सेसाणं कम्माणं ठिदिबंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो । ११६ ताधे अप्पाबहु णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । ११७. चदुहं कम्माणं ठिदिवंधो असंखेज्जगुणो । ११८. मोहणीयस्स ठिदिबंधो संखेज्जगुणो। ११९. तदो संखेज्जेसु ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु तिण्हं घादिकम्माणं वेदणीयस्स च पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ठिदिवंधो जादो। १२०. ताधे अप्पावहु णामा-गोदाणं ठिदिबंधो थोवो । १२१. चदुहं कम्माणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । १२२. मोहणीयस्स ठिदिवंधो असंखेजगुणो।
~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~ चूर्णिसू०-तत्पश्चात् मोहनीयका स्थितिबन्ध पल्योपमप्रमाण होता है और शेष कर्मोंका स्थितिवन्ध पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। इस स्थितिवन्धके पूर्ण होनेपर मोहनीयका स्थितिवन्ध पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। तत्पश्चात् सब कर्मोंका स्थितिवन्ध पल्योपमके संख्यातवे भागमात्र ही होता है । उस समय भी अल्पबहुत्व इस प्रकार है-नाम और गोत्रका स्थितिबन्ध सबसे कम है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। मोहनीयका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इस क्रमसे संख्यात सहस्र स्थितिबन्ध व्यतीत होते है ॥१०७-११४॥
चूर्णिस०-तत्पश्चात् अन्य प्रकारका स्थितिवन्ध होता है। जिस समय नाम और गोत्रकर्मका पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण स्थितिवन्ध होता है, उस समय शेष कर्मोंका स्थितिवन्ध पल्योपमके संख्यातवे भागप्रमाण होता है। उस समय अल्पबहुत्व इस प्रकार है-नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सवसे कम होता है। चार कर्मोंका स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा होता है और मोहनीयका स्थितिवन्ध संख्यातगुणा होता है । तत्पश्चात् संख्यात सहस्र स्थितिवन्धोंके व्यतीत होनेपर तीन घातिया कर्मोंका और वेदनीय कर्मका स्थितिवन्ध पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण हो जाता है। उस समय अल्पवहुत्व इस प्रकार है-नाम
और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे कम होता है। ज्ञानावरणादि चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । मोहनीय कर्मका स्थितिवन्ध असंख्यात गुणा होता है ॥११५-१२२॥