Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 1018
________________ कलाय पाहुड सुत्त अवगयवेद-णवंसय-इत्थी-पुरिसेसु चाणुपुब्बीए । अट्ठारसयं णवयं एक्कारसयं च तेरसया ॥ ४५ ॥ कोहादी उवजोगे चदुसु कसाएसु चाणुपुव्वीए । सोलस य ऊणवीसा तेवीसा चेव तेवीसा ॥ ४६॥ णाणाम्हि य तेवीसा तिविहे एककम्हि एककवीसा य । अण्णाणम्हि य तिविहे पंचेव य संकमट्ठाणा ॥ ४७ ॥ आहारय-भविएसु य तेवीसं होति संक्रमडाणा । अणाहारएसु पंच य एक्कं ठाणं अभरिएसु ॥ ४८ ॥ छब्बीस सत्तवीसा तेवीसा पंचवीस बावीसा । एदे सुण्णहाणा अवगदवेदस्स जीवस ॥ ४९ ॥ उगुवीसहारसयं चोद्दस एक्कारसादिया सेसा । एदे सुण्णहाणा ण_सए चोदसा होति ।। ५० ।। अट्ठारस चोदसयं हाणा सेसा य दसगयादीया । एदे सुण्णहाणा बारस इत्थीसु बोद्धव्वा ॥ ५१ ॥ चोदसणणवगमादी हवंति उवसामगे च खवगे च । एदे सुण्णट्ठाणा दस वि य पुरिसेसु बोद्धव्या ।। ५२ ।। णव अ सत्त छकं पणग दुगं एक्कयं च बोद्धव्वा । एदे सुण्णहाणा पढमकसायोवजुत्तेसु ।। ५३ ।। सत्त य छक्कं पणगं च एकयं चेव आणुपुवीए । एदे सुण्णट्ठाणा विदियकसाओवजुत्तेसु ॥ ५४ ॥ दिढे सुण्णासुण्णे वेद-कसाएसु चेव द्वाणेसु । मग्मणगणेसणाए दु संकमो आणुपुबीए ॥ ५५ ॥ कम्मंसियहाणेसु य बंधट्ठाणेसु संकयहाणे । एकेकेण समाणय बंधेण य संक्रमट्ठाणे ॥ ५६ ।। सादि य जहण्ण संक्रय कदिखुत्तो होइ ताच एकेके । अविरहिद सांतरं केवचिरं कदिभाग परिमाणं ।। ५७ ॥ एवं दव्वे खेत्ते काले भावे य सण्णिवाद य । संकमणयं णयविद् णेया सुददेसिदमुदारं ॥ ५८ ॥ ६ वेदग-अत्थाहियारो (६) कदि आवलियं पवेसेइ कदि च पविस्संति कस्स आवलियं । खेत्त-भव काल पोग्गल-हिदिवियागोदयखयो दु ॥ ५९ ॥

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