Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta
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कसायपाहुड-सुत्तगाहा
२ मूलगाहा(११३) कदिसु च अणुभागेसु च हिंदीसु वा केत्तियासु का किट्टी । सव्वासु वा द्विदीसु च आहो सब्बासु पत्तेयं ॥१६६॥
भालगाहा(११४) १. किट्टी च द्विदिविसेसेसु असंखेज्जेसु णियमसा होदि ।
णियमा अणुभागेसु च होदि हु किट्टी अणंतेसु ॥१६७॥ (११५) २. सव्वाओ किट्टीओ विदियहिदीए दु होंति सन्धिस्से ।
जं किट्टि चेदयदे तिस्से अंसो च पढमाए ॥१६८॥
३मूलगाहा(११६) किट्टी च पदेसग्गेणणुभागग्गेण का च कालेण । अधिगा समा व हीणा गुणेण किं वा विसेसेण ॥१६९।।
भालगाहा(११७) १. विदियादो पुण पढमा संखेज्जगुणा भवे पदेसग्गे ।
विदियादो पुण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया ॥१७०॥ (११८) २. विदियादो पुण पढमा संखेज्जगुणा दु वग्गणग्गेण ।
विदियादो पुण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया ॥१७१॥ (११९) ३. जा हीणा अणुभागेणहिया सा वग्गणा पदेसग्गे ।
भागेणऽणंतिमेण दु अधिगा हीणा च बोद्धव्या ॥१७२॥ (१२०) ४. कोधादिवग्गणादो सुद्धं कोधस्स उत्तरपदं तु ।
सेसो अणंतभागो णियया तिस्से पदेसग्गे ॥१७३॥ (१२१) ५. एसो कयो च कोधे माणे णियमा च होदि मायाए ।
लोभम्हि च किट्टीए पत्तेगं होदि वोद्धब्बो ॥१७४॥ (१२२) १. पडमा च अणंतगुणा विदियादो णियमसा दु अणुभागो ।
तदियादो पुण विदिया कमेण सेसा गुणेणऽहिया ॥१७५॥ (१२३) १. पहमसमयकिट्टीणं कालो वस्सं व दो व चत्तारि ।
अट्ठ च बस्साणि हिदी विदियहिदीए समा होदि ॥१७६॥ (१२४) २. जं किट्टि वेदयदे जवमझं सांतरं दुसु हिदीसु ।
पढमा जं गुणसेही उत्तरसेही य विदिया दु ॥१७७॥ (१२५) ३. विदियहिदि आदिपदा सुद्ध' पुण होदि उत्तरपदं तु ।
सेसो असंखेजदिमो भागो तिस्से पदेसग्गे ॥१७८॥
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