Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 1033
________________ खवणाहियार - चूलिया अणमिच्छ मिस्स सम्मं अट्ठ णबुंसित्थिवेदछकं च । पुंवेदं च खवेदि हु कोहादीए च संजलणे ॥ १॥ अथ थी गिद्धकम्मं णिद्दाणिद्दा य पयल-पयला य । अथ णिरय - तिरियणामा झीणा संछोहणादीसु ॥ २ ॥ सव्वस्स मोहणीयस्स आणुपुव्वी य संकमो होइ । लोकसाए पियमा असंकमो होइ वोद्धव्वो ॥ ३॥ संदिपुरिसवे इत्थीवेदं णकुंसयं चेव । सत्तेव णोकसाए णियमा कोहि संहदि ॥ ४ ॥ कोहं च छुहइ माणे माणं मायाए पियमसा छुहद्द | मायं च छुहइ लोहे पडिलोमो संकमो णत्थि ॥ ५॥ जो जहि संतोणियमा बंधहि हो संछुहणा । बंधेण हीणदरगे अहिए वा संकमो णत्थि ॥ ६॥ होइ उदओ अहिओ उदरण संकमो अहिओ । गुणसे अनंतगुणा बोद्धव्वा होइ अणुभागे ॥ ७ ॥ बंधे हो उदओ अहिओ उदरण संकमो अहिओ । गुणसेढि असंखेज्जा च पदेसग्गेण बोद्धव्या ॥ ८ ॥ उदयो च अनंतगुणो संपहिबंधेण होड़ अणुभागे । सेकाले उदयादो संपहिबंधो अनंतगुणो ॥ ९॥ चरि बादररागे णामा-गोदाणि वेदणीयं च । वसंत बंदि दिवस संतो य जं सेसं ॥१०॥ जं चावि संछुतो खवे कि अबंधगो तिस्से | सुमम्हि संपराए अबंधगो बंधगियराणं ॥ ११ ॥ जाव ण छदुमत्यादो तिहं घादीण वेदगो हो । अधणंतरेण खइया सव्वण्हू सव्वदरिसी य ॥ १२॥ सचूलियं कसायपाहुडं समत्तं

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