Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta
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कसाय पाहुड सुत्त (५१) सम्मत्तपढमलंभो सबोरसमेण तह वियद्वेण ।
भजियव्यो य अभिस्खं सचोवसमेण देसेण ।।१०४।। (५२) सम्मत्तपटमलंभस्सऽणंतरं पच्छदो य मिच्छत्तं ।
लंभस्स अपढमस्स दु भजियच्चो पच्छदो होदि ।।१०५।। (५३) कम्माणि जस्स तिणि दुणियमा सो संकयेण भजियव्यो ।
एयं जस्स दु कम्मं संकमणे सो ण भजियव्यो ॥१०६॥ (५४) सम्माइट्ठी सदहदि पवयणं णियमसा दु उवढे ।
सद्दहदि असम्भावं अजाणमाणो गुरुणिओगा ॥१०७॥ (५५) मिच्छाइट्ठी णियमा उवइ8 पवयणं ण सद्दहदि ।
सदहदि असम्भावं उवह वा अणुवइट्ट ।।१०८॥ (५६) सम्मामिच्छाइट्ठी सागारो वा तहा अणागारो।
अध वंजणोग्गहम्हि दु सागारो होइ बोद्धव्यो (१५) ॥१०९॥
११ दंसणमोहक्खवणा-अत्याहियारो (५७) दसणयोहक्खवणापट्ठवगो कम्मभूमिजादो दु ।
णियमा मणुसगदीए णिहवगो चाचि सव्वत्थ ।।११०॥ (५८) मिच्छत्तवेदणीए कम्मे ओवट्टिदम्मि सम्मत्ते ।
खवणाए पट्टगो जहण्णगो तेउलेस्साए ।।१११।। (५९) अंतोमुहुत्तमद्ध देसणमोहस्स णियमसा खवगो ।
खीणे देव-मणुस्से सिया वि णामाउगो वंधो ॥११२।। (६०) खवणाए पट्ठवगो जम्हि भवे णियमसा तदो अण्णो ।
णाधिच्छदि तिणि भवे दंसणमोहम्मि खीणम्मि ॥११३।। (६१ ) संखेजा च मणुस्सेसु खीणमोहा सहस्ससो णियमा ।
सेसासु खीणमोहा गदीसु णियमा असंखेज्जा (५) ॥११४॥ १२.१३ संजमासंजमलद्धि-संजमलद्धि-अस्थाहियारो (६२) लद्धी य संजमासंजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स ।
वड्ढावड्डी उवसामणा य तह पुव्यवद्धाणं ।।११५॥
१४ चरित्तमोहोवसामणा-अस्थाहियारो (६३) उवसायणा दिविधा उवसामो कस्स कस्स कम्मस्म ।
कं कम्मं उवसंतं अणउवसंतं च कं कम्म ॥११६॥
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