Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

Previous | Next

Page 1022
________________ ९१४ कसाय पाहुड सुत्त (५१) सम्मत्तपढमलंभो सबोरसमेण तह वियद्वेण । भजियव्यो य अभिस्खं सचोवसमेण देसेण ।।१०४।। (५२) सम्मत्तपटमलंभस्सऽणंतरं पच्छदो य मिच्छत्तं । लंभस्स अपढमस्स दु भजियच्चो पच्छदो होदि ।।१०५।। (५३) कम्माणि जस्स तिणि दुणियमा सो संकयेण भजियव्यो । एयं जस्स दु कम्मं संकमणे सो ण भजियव्यो ॥१०६॥ (५४) सम्माइट्ठी सदहदि पवयणं णियमसा दु उवढे । सद्दहदि असम्भावं अजाणमाणो गुरुणिओगा ॥१०७॥ (५५) मिच्छाइट्ठी णियमा उवइ8 पवयणं ण सद्दहदि । सदहदि असम्भावं उवह वा अणुवइट्ट ।।१०८॥ (५६) सम्मामिच्छाइट्ठी सागारो वा तहा अणागारो। अध वंजणोग्गहम्हि दु सागारो होइ बोद्धव्यो (१५) ॥१०९॥ ११ दंसणमोहक्खवणा-अत्याहियारो (५७) दसणयोहक्खवणापट्ठवगो कम्मभूमिजादो दु । णियमा मणुसगदीए णिहवगो चाचि सव्वत्थ ।।११०॥ (५८) मिच्छत्तवेदणीए कम्मे ओवट्टिदम्मि सम्मत्ते । खवणाए पट्टगो जहण्णगो तेउलेस्साए ।।१११।। (५९) अंतोमुहुत्तमद्ध देसणमोहस्स णियमसा खवगो । खीणे देव-मणुस्से सिया वि णामाउगो वंधो ॥११२।। (६०) खवणाए पट्ठवगो जम्हि भवे णियमसा तदो अण्णो । णाधिच्छदि तिणि भवे दंसणमोहम्मि खीणम्मि ॥११३।। (६१ ) संखेजा च मणुस्सेसु खीणमोहा सहस्ससो णियमा । सेसासु खीणमोहा गदीसु णियमा असंखेज्जा (५) ॥११४॥ १२.१३ संजमासंजमलद्धि-संजमलद्धि-अस्थाहियारो (६२) लद्धी य संजमासंजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स । वड्ढावड्डी उवसामणा य तह पुव्यवद्धाणं ।।११५॥ १४ चरित्तमोहोवसामणा-अस्थाहियारो (६३) उवसायणा दिविधा उवसामो कस्स कस्स कम्मस्म । कं कम्मं उवसंतं अणउवसंतं च कं कम्म ॥११६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043