Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta
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कसाय पाहुड- सुत्तगाहा
( ७ ) को कदमाए हिदीए पवेसगो को व के य अणुभागे । सांतर निरंतरं वा कदि वा समया दु बोद्धव्या ॥ ६० ॥ (८) बहुदरं बहुगदरं से काले को णु थोवदरगं वा ।
अणुसमयमुदीरें तो कदि वा समयं उदीरेदि ॥ ६१ ॥ ( ९ ) जो जं संकामेदि य जं बंधदिजं च जो उदीरेदि । तं hr sis अहियं द्विदि अणुभागे पदेसग्गे (४) ॥ ६२ ॥
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७ उवजोग - अत्याहियारो
(१०) केवचिरं उवजोगे कस्मि कसायम्मि को व केणहियो । को कम का अभिवमुवजोगसुवजुत्तो ॥ ६३ ॥ ( ११ ) एकहि भवग्गणे एक्ककसायम्हि कदि च उवजोगा ।
एकहि य उवजोगे एक्ककसाए कदि भवा च ॥ ६४ ॥ (१२) उवजोगवग्गणाओ कस्मि कसायम्पि केत्तिया होंति ।
करिस्से च गदीए केवडिया वग्गणा होति ॥ ६५ ॥ (१३) एकहि य अणुभागे एककसायम्मि एककाले ।
उवजुत्ता का च गदी विसरिसमुवजुज्जदे का च ॥ ६६ ॥ (१४) केवडिया उवजुत्ता सरिसीसु च वग्गणा- कसाए ।
केवडिया च कसाए के के च विसिल्सदे केण ॥ ६७ ॥ (१५) जे जे जम्हि कसाए उवजुत्ता किण्णु भूदपुव्वा ते । होंहिंति च उवजुत्ता एवं सव्वत्थ बोद्धव्वा ॥ ६८ ॥ (१६) उवजोगवग्गणाहि च अविरहिदं काहि विरहिदं चावि । पढमसमयोवजुत्तेहिं चरिमसमए च वोद्धव्वा (७) ॥ ६९ ॥ ८ चउट्ठाण अत्याहियारो
( १७ ) कोहो चउव्विहो बुत्तो माणो वि चउव्विहो भवे । माया चउव्विहा वृत्ता लोहो विय चउव्विहो ॥ ७० ॥ (१८) णग - पुढवि वालुगोदयराईसरिसो चडव्विहो कोहो ।
सेलघण-अट्ठि दारुअ-लदासमाणो हवदि माणो ॥ ७१ ॥ (१९) वंसीजण्डुगसरिसी मेंढविसाणसरिसी य गोमुत्ती ।
अवलेहिणीसमाणा माया वि चउव्विहा भणिदा ॥ ७२ ॥ ( २० ) किमिरागरत्त समगो अक्खमलसमो य पंसुलेवसमो । हालवत्थसमगो लोभो वि चउन्विहो भणिदो ||७३ ||
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