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कसाय पाहुड सुच [ १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार
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मायं खवेदि । १५२२. एत्तो पाए लोभं खवेमाणस्स णत्थि णाणत्तं ।
१५२३. पुरिसवेदयस्स लोभेण उवदिस्स णाणत्तं वत्तइस्लामो । १५२४. जाव अंतरं ण करेदि, ताव णत्थि णाणत्तं । १५२५, अंतरं करेमाणो लोभस्त पढमडिदि ठवेदि । १५२६. सा केम्महंती १ १५२७. जद्देही कोहेण उवदिस्स कोहस्स परमदी कोहस्स माणस्स मायाए च खवणद्धा तद्देही लोभेण उवदिस्स पढमट्टिदी | १५२८. कोहेण उबट्टिदो जम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि, लोभेण उचट्टिदो तहि कोहं खवेदि । १५२९. कोहेण उवट्टिदो जम्हि किट्टीओ करेदि, लोभेण उवट्टिदो तहि माणं खवेदि । १५३०. कोहेण उवट्टिदो जम्हि कोहं खवेदि, लोभेण
वो हि माणं खवेदि । १५३१. कोहेण उवद्विदो जम्हि माणं खवेदि, लोभेण उट्टिदो तम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि । १५३२. कोहेण उवट्टिदो जम्हि मायं खवेदि, लोभेण उवट्टिदो तहि किट्टीओ करेदि । १५३३. कोहेण उवट्ठिदो जम्हि लोभ खवेदि, तहि चेव लोभेण उवट्ठिदो लोभं खवेदि । १५३४. एसा सव्वा सण्णिकासणा पुरिसवेदेण उवदिस्स |
हुआ उस ही समय मायाका क्षय करता है । इस स्थल पर लोभको क्षपण करनेवाले जीवके कोई विभिन्नता नहीं है ॥ १५१४-१५२२ ॥
चूर्णिसू०० - अब लोभकषाय के साथ श्रेणी चढ़नेवाले पुरुषवेदीकी विभिन्नताको कहेंगे । जब तक अन्तर नहीं करता है, तब तक कोई विशेषता नहीं है । अन्तरको करता हुआ वह लोभकी प्रथम स्थितिको स्थापित करता है ॥१५२३-१५२४॥
शंका- वह लोभकी प्रथम स्थिति कितनी बड़ी है ? ॥। १९२६ ॥
समाधान - क्रोध के उदयसे चढ़े हुए क्षपककी जितनी क्रोधकी प्रथम स्थिति है, तथा क्रोध, मान और मायाका क्षपणकाल है, उतनी बड़ी लोभके साथ उपस्थित क्षपकके लोभकी प्रथम स्थिति है ।। १५२७॥
चूर्णि सू० - क्रोध से उपस्थित हुआ जिस समय में अश्वकर्णकरणको करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस समय मे क्रोधका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समयमें कृष्टियोको करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस समयमे मानका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समय में क्रोधका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस समय में मायाका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समय में मानका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस समय में अश्वकर्णकरण करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समय मे मायाका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस समय मे कृष्टियोको करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समय में लोभका क्षय करता है, लोभसे उपस्थित हुआ उस ही समय में लोभका क्षय करता है । यह सब सन्निकर्षप्ररूपणा पुरुषवेदसे उपस्थित क्षपककी कही गई है । १५२८ - १५३४॥