Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 1008
________________ पच्छिमक्खधो अत्याहियारो १. पच्छिमक्खंधे त्ति अणियोगद्दारे तम्हि इमा मग्गणा । २. अंतोमुहुत्ते आउगे सेसे तदो आवज्जिदकरणे कदे तदो केवलिसमुग्धादं करेदि । ३. पढमसमये दंडं करेदि । पश्चिमस्कन्ध-अर्थाधिकार चूर्णिस०-अब इस पश्चिमस्कन्ध नामक अनुयोगद्वारमें यह वक्ष्यमाण प्ररूपणा मार्गणा करनेके योग्य है ॥१॥ विशेपार्थ-चूर्णिकारने इस अधिकारका नाम पश्चिमस्कन्ध कहा है । इसे जयधवलाकारने समस्त श्रुतस्कन्धकी चूलिका कहा है । इस कसायपाहुडकी समाप्ति होनेपर जो कथन अवशेष रहा है, वह चूर्णिकारने चूलिकारूपसे इसमे निवद्ध किया है । महाकम्मपयडिपाहुडके चौवीस अनुयोगद्वारोंमे भी पश्चिमस्कन्ध नामका अन्तिम अनुयोगद्वार है और वहॉपर भी वही अर्थ कहा गया है, जो कि यहॉपर चूर्णिकारने कहा है । दोनो सिद्धान्त-ग्रन्थोकी एकरूपता या एक-उद्देश्यता बताना ही संभवतः चूर्णिकारको अभीष्ट रहा है । घातिया कर्माके क्षय हो जानेपर सयोगिकेवली भगवान्के जो अन्तम अघातिया काँका स्कन्धरूप कर्म-समुदाय पाया जाता है, उसे पश्चिमस्कन्ध कहते हैं । अथवा पश्चिम अर्थात् अन्तिम औदारिकशरीरके, तैजस और कार्मणशरीररूप नोकर्मस्कन्धयुक्त जो कर्मस्कन्ध है, उसे पश्चिमस्कन्ध जानना चाहिए। क्योकि इस अधिकारमे केवलीकी समुद्धात-गत क्रियाओका वर्णन करते हुए औदारिकशरीरसम्बन्धी मन, वचन, कायरूप योगनिरोध आदिका विस्तारसे वर्णन किया गया है । पन्द्रह महाधिकारोके द्वारा कसायपाहुडका वर्णन कर देनेके पश्चात् भी इस अधिकारके निरूपण करनेकी आवश्यकता इसलिए पड़ी कि चारित्रमोह-क्षपणाके पश्चात् यद्यपि शेष तीन घातिया कर्मोंके अभावका वर्णन कर दिया गया है, तथापि अभी अघातिया कर्म सयोगी जिनके अवशिष्ट है, उनके क्षपणका वर्णन किये विना प्रतिपाद्य विषयकी अपूर्णता रह जाती है, उसकी पूर्तिके लिए ही इस अधिकारका निरूपण चूर्णिकारने युक्ति-युक्त समझा और परिशिष्टरूप इस निरूपणको पश्चिमस्कन्ध संज्ञा दी। चूर्णिसू०-सयोगि-जिन आयुकर्मके अन्तर्मुहूर्तमात्र शेष रह जानेपर पहले आवर्जितकरण करते हैं और तदनन्तर केवलिसमुद्धात करते हैं ॥२॥ विशेषार्थ-केवलिसमुद्भातके अभिमुख होनेको आवर्जितकरण कहते हैं, अर्थात् केवलिसमुद्घात करनेके लिए जो आवश्यक तैयारी की जाती है, उसे शास्त्रकारोने 'आवर्जितकरण' संज्ञा दी है। इसके किये विना केवलिसमुद्घातका होना संभव नहीं है, अतः पहले अन्तमुहूर्त तक केवली आवर्जितकरण करते हैं। आवर्जितकरण करनेके पश्चात् केवली भगवान्

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