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उप० गा० १२ ] चारित्रमोहक्षपणा-उपसंहार-निरुपण
उदयो च अणंतगुणो संपहि-बंधेण होइ अणुभागे। से काले उदयादो संपहि-बंधो अणंतगुणों ॥९॥ चरिम बादराये णामा-गोदाणि वेदीयं च । वस्सस्संतो बंधदि दिवसस्संतो य ज सेसं ॥१०॥ जं चावि संछुहंतो खवेइ किट्टि अबंधगो तिस्से । सुहमम्हि संपराए अबंधगो बंधगियराणं ॥११॥ जाव ण छदुमत्थादो तिण्हं घादीण वेदगो होइ । अधऽणंतरेण वइया सव्वा सव्वदरिसी य ॥१२॥
चरित्तमोहक्खवणा त्ति समत्ता। एवं कसायपाहुडसुत्ताणि सपरिमासाणि समत्ताणि सव्वसमासेण वेसद-तेत्तीसाणि ।
एवं कसायपाहुडं समत्तं । __ अनुभागकी अपेक्षा साम्प्रतिक-बन्धसे साप्रतिक-उदय अनन्तगुणा होता है । इसके अनन्तरकालमें होनेवाले उदयसे साम्प्रतिक बन्ध अनन्तगुणा होता है ॥९॥
चरमसमयवती वादरसाम्परायिक क्षपक नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मको वर्षके अन्तर्गत बांधता है। तथा शेष जो तीन घातिया कर्म हैं उन्हें एक दिवसके अन्तर्गत बांधता है ॥१०॥
जिस कृष्टिको भी संक्रमण करता हुआ क्षय करता है, उसका वह बन्ध नहीं करता । सूक्ष्मसापरायिक कृष्टिके वेदनकालमें वह उसका अवन्धक रहता है। किन्तु इतर कृष्टियोंके वेदन वा क्षपणकालमें वह उनका बन्ध करता है ॥११॥
जब तक वह क्षीणकपायवीतरागसंयत छमस्थ अवस्थासे नहीं निकलता है, तब तक ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीनों घातिया कोका वेदक रहता है । इसके पश्चात् अनन्तर समयमें तीनों घातिया काँक्षा क्षय करके सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन जाता है ॥१२॥
इस प्रकार चारित्रमोहक्षपणाधिकारकी चूलिका समाप्त हुई । इस प्रकार परिभापा-सहित दो सौ तेतीस गाथासूत्रात्मक
कसायपाहुड समाप्त हुआ।
१ कसाय० गा० १४५ । २ कसाय० गा० २०९ । ३ कसाय० गा० २१७ ।