Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 1012
________________ ९०४ कसाय पाहुड सुत्त [पश्चिमस्कन्ध-अर्थाधिकार २०. एत्तो अंतोमुहुत्तं गंतूण चादरकायजोगेण वादरपणजोगं णिसंभइ । २१. तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादरवचिजोगं णिरुंभइ । २२. तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादर-उस्सास-णिस्सासं णिरंभइ । २३. तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण तमेव वादरकायजोगं णिरंभइ । २४. तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण सुहुमकायजोगेण सुहुममणजोगं णिरुंभइ । २५. तदो अंतोमुहुत्तेण सुहुमकायजोगेण सुहुमवचिजोगं णिरुंभइ । २६. तदो अंतोमुत्तेण सुहुमकायजोगेण सुहुमउस्सासं णिरंभइ । २७. तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण सुहुमकायजोगेण सुहुमकायजोगं णिरुंभमाणो इमाणि करणाणि करेदि । २८. पढमसमये अपुचफयाणि करेदि पुव्वफयाणं हेह्रदो। २९. आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदाणमसंखेज्जदिभागमोकड्डुदि । ३०. जीवपदेसाणं च असंखेज्जदिभागमोकड्डदि । ३१. एवमंतोमुहुत्तमपुव्वफहयाणि करेदि । ३२. असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए जीवपदेसाणं च असंखेज्जगुणाए सेडीए । ३३. अपुव्वसमुद्धात-क्रियाके समाप्त हो जानेपर प्रतिसमय स्थिति और अनुभागका घात नहीं होता, केवल अन्तर्मुहूर्तकाल तक स्थितिकांडक और अनुभागकांडकका उत्कीरणकाल प्रवर्तमान रहता है । केवलीके स्वस्थान-समवस्थित हो जानेपर वे अन्तर्मुहूर्त तक योग-निरोधकी तैयारी करते हैं । इस समय अनेक स्थितिकांडक-घात और अनुभागकांडक-घात व्यतीत होते हैं । योगनिरोधमें क्या-क्या कार्य किस क्रमसे होते है, यह चूर्णिकार आगे स्वयं बतायेगे । चूर्णिसू०-इससे अन्तर्मुहूर्त आगे जाकर अर्थात् समुद्धातदशाके उपसंहारके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् वे सयोगिजिन बादरकाययोगके द्वारा वादरमनोयोगका निरोध करते हैं । तत्पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्तके द्वारा बादरकाययोगसे बादरवचनयोगका निरोध करते है । पुनः एक अन्तर्मुहूर्त के द्वारा बादरकाययोगसे वादर उच्छ्वास-निःश्वासका निरोध करते है । पुनः एक अन्तर्मुहूर्त के द्वारा बादरकाययोगसे उसी बादरकाययोगका निरोध करते है। पुनः एक अन्तर्मुहूर्तके पश्चात् सूक्ष्मकाययोगसे सूक्ष्ममनोयोगका निरोध करते हैं। पुनः एक अन्तमुहूर्त के द्वारा सूक्ष्मवचनयोगका निरोध करते हैं। पुनः एक अन्तर्मुहूर्तके द्वारा सूक्ष्मकाययोगसे सूक्ष्म उच्छ्वास-निःश्वासका निरोध करते हैं ।।२०-२६॥ चूर्णिसू०-पुनः एक अन्तर्मुहूर्त आगे जाकर सूक्ष्मकाययोगसे सूक्ष्मकाययोगका निरोध करते हुए इन करणोको करते हैं-प्रथम समयमे पूर्वस्पर्धकोके नीचे अपूर्वस्पर्धकोंको करते हैं। पूर्वस्पर्धकोसे जीवप्रदेशोका अपकर्षण करके अपूर्वस्पर्धकोको करते हुए पूर्वस्पर्धकोकी प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोके असंख्यातवें भागका अपकर्षण करते हैं । जीवप्रदेशोंके भी असंख्यातवे भागका अपकर्षण करते हैं। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्तकाल तक अपूर्वस्पर्धकोकी रचना करते हैं। इन अपूर्वस्पर्धकोंको प्रतिसमय असंख्यातगुणित हीन श्रेणीके क्रमसे निवृत्त करते हैं। किन्तु जीव-प्रदेशोका अपकर्षण असंख्यातगुणित वृद्धि रूप श्रेणीके क्रमसे करते हैं। ये सब अपूर्वस्पर्धक जगच्छ्रणीके असंख्यातवे भाग हैं ।

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