Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

Previous | Next

Page 999
________________ गा० २३१ ] चारित्रमोहक्षपक- कृष्टिक्षपण क्रिया- निरूपण ८९१ १५०९. जम्हि कोण उवद्विदो अस्सकण्णकरणं करेदि, माणेण उवट्टिदो तम्हि काले कोहं खवेदि । १५१०. कोहेण उवदिस्त जा किट्टीकरणद्धा माणेण उवदिस्स तहि काले अस्सकण्णकरणद्धा । १५११. कोहेण उवदिस्स जा कोहस्स खवणद्धा माणेण उवदिस्स तहि काले किट्टीकरणद्धा । १५१२. कोहेण उवट्ठिदस्स जा माणस खवणद्धा, माणेण उवदिस्स तम्हि चेव काले माणस्स खवणद्धा । १५१३. एत्तो पाए जहा कोण उवदिस्स विही, तहा माणेण उवट्ठिदस्स । १५१४. पुरिसवेदस्स मायाए उवदिस्स णाणत्तं वत्तस्साम । १५१५. तं जहा । १५१६. कोहेण उवट्ठिदस्स जम्महंती कोहस्स पढमट्ठिदी कोहस्स चेव खवद्धा माणस च खवणद्धा मायाए उवदिस्स एम्महंती मायाए पढमट्टिदी | १५१७. कोण उवो जहि अस्सकण्णकरणं करेदि, मायाए उवट्ठिदो तम्हि कोहं खवेदि । १५१८. कोण उवट्टिदो जम्हि किट्टीओ करेदि, मायाए उवडिदो तम्हि माणं खवेदि । १५१९. कोहेण उवट्ठिदो जम्हि कोथं खवेदि, मायाए उवट्टिदो तम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि । १५२०.कोहेण उवद्विदो जम्हि माणं खवेदि, मायाए उचट्ठिदो तम्हि किट्टीओ करेदि । १५२१. कोहेण उचट्ठिदो जम्हि मायं खवेदि, तम्हि चेत्र मायाए उवट्टिदो चूर्णिसू० - जिस समयमे क्रोधके साथ श्रेणी चढ़नेवाला क्षपक अश्वकर्णकरणको 0 करता है, उस समय में मानके साथ श्रेणी चढ़नेवाला क्षपक क्रोधका क्षय करता है । क्रोधके साथ चढ़े हुए जीवका जो कृष्टिकरण काल है, मानके साथ चढ़े हुए जीवका उस समय मे वर्ण करणकाल होता है । क्रोधके साथ चढ़े हुए जीवके जो क्रोधका क्षपणकाल है, मानके साथ चढ़े हुए जीवका उस समय में कृष्टिकरणकाल होता है । क्रोधके साथ श्रेणीपर चढ़नेवाले जीवके मानका जो क्षपणकाल है, मानके साथ चढ़नेवाले जीवके उसी समयमे मानका क्षपणकाल होता है । इस स्थलसे लेकर आगे जैसी क्रोधके उदयसे श्रेणी चढ़नेवाले जीवके क्षपणाविधि कही गई है, वैसी ही विधि मानके उदयसे श्रेणी चढ़नेवाले जीवक जानना चाहिए ।। १५०९-१५१३॥ चूर्णिस् ( ० - अब मायाके उदय के साथ श्रेणी चढ़नेवाले पुरुपवेदीकी विभिन्नताको कहेंगे । वह इस प्रकार है— क्रोधके उदयके साथ श्र ेणी चढ़े हुए क्षपककी जितनी बड़ी क्रोधकी प्रथम स्थिति, क्रोधका ही क्षपणकाल और मायाका क्षपणकाल है, उतनी बड़ी मायाके साथ श्र ेणी चढ़नेवाले क्षपकके मायाकी प्रथम स्थिति है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समयमें अश्वकर्णकरण करता है, मायासे उपस्थित हुआ उस समय में क्रोधका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समयमें कृष्टियोको करता है, मायासे उपस्थित हुआ उस समय में मानका क्षय करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समयमे क्रोधका क्षय करता है, मायासे उपस्थित हुआ उस समयमे अश्वकर्णकरण करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समय मानका क्षय करता है, मायासे उपस्थित हुआ उस समय मे कृष्टियोको करता है । क्रोधसे उपस्थित हुआ जिस समयमे मायाका क्षय करता है, मायासे उपस्थित 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043