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गा० २०३ ]
चारित्रमोहक्षपक कृष्टिवेदक क्रिया-निरूपण
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१००१. एदमक्खवगस्स णादव्वं । १००२. खवगस्स आवलियाए असंखेज्जदिभागो अंतरं । १००३. इमस्स पुण. सामण्णाणं द्विदीणमंतरं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
विशेषार्थ - इस चौथी भाष्यगाथामे असामान्यस्थितियों से अन्तरित सामान्यस्थितियोंकी संख्याका निर्णय किया गया है । यवमध्यके दोनो ओर एक-एक असामान्य स्थिति से अन्तरित अर्थात् अन्तर या विभागको प्राप्त होनेवाली जितनी सामान्यस्थितियाँ पाई जाती हैं, उन सबके समुदायको एक शलाका जानना चाहिए । पुनरपि इसी प्रकार दोनो ही पार्श्वभागोमे एक-एक असामान्य स्थिति से अन्तरित जितनी सामान्यस्थितियाँ पाई नावें, उनकी दूसरी शलाका ग्रहण करना चाहिए । पुनरपि उभय पार्श्वमे एक - एक असामान्यस्थितिसे अन्तरित जितनी सामान्यस्थितियाँ पाई जावे, उन सबके समूहकी तीसरी शलाका ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार दोनो ओर आगे-आगे बढ़ने पर एक-एक असामान्यस्थिति से अन्तरित सामान्यस्थितियोकी समस्त शलाकाऍ यद्यपि पत्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण होती है, तथापि वे उपरि-वक्ष्यमाण विकल्पोकी अपेक्षा सबसे कम होती हैं । 'दो - अन्तरित सामान्य स्थितियाँ विशेष अधिक हैं, ' इसका अभिप्राय यह है कि यवमध्यके उभय पार्श्व - भागों में दो-दो असामान्य स्थितियो से अन्तरको प्राप्त होकर पाई जानेवाली सामान्यस्थितियोकी शलाकाऍ भी यद्यपि पल्योपमके असंख्यातवें भाग है, तथापि एकान्तरित शलाकाओकी अपेक्षा विशेष अधिक है । यहाँ विशेषका प्रमाण पत्योपमके असंख्यातवें भागसे भाजित एक भागप्रमाण जानना चाहिए । पुनः तीन-तीन असामान्यस्थितियो से अन्तरित सामान्य स्थितिशलाकाओका प्रमाण विशेष अधिक है । पुनः चार-चार असामान्यस्थितियोसे अन्तरित सामान्य स्थितिशलाकाओका प्रमाण विशेष अधिक है । इस प्रकार विशेष अधिक के क्रमसे बढ़ती हुई पाँच-पाँच, छह-छह आदि असामान्यस्थितियो से अन्तरित सामान्य स्थितिशलाकाओका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भाग आगे जानेपर दुगुना हो जाता है । तदनन्तर इसी क्रमसे असंख्यात दुगुण- वृद्धियोके व्यतीत होनेपर यवमध्य उत्पन्न होता है । इस यवमध्य से ऊपर और नीचे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही नाना गुणवृद्धि-हानिरूप शलाकाएँ पाई जाती हैं और इनसे एक गुणवृद्धि-हानिरूप स्थानान्तर असंख्यातगुणित होता है । जयधवलाकार इसी प्रकारसे सामान्यस्थितियोसे अन्तरित असामान्य स्थितियोंकी यवमध्यपप्ररूपणाका भी संकेत इसी गाथाके द्वारा कर रहे है ।
चूर्णिसू० - यह पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण सामान्य स्थितियोका उत्कृष्ट अन्तर अभव्यसिद्धो के योग्य स्थिति में वर्तमान भव्य अक्षपक जीवका जानना चाहिए । क्षपकके सामान्यस्थितियोका उत्कृष्ट अन्तर आवली के असंख्यातवें भागप्रमाण है । किन्तु इस उपर्युक्त अक्षपकके सामान्य स्थितियोका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥१००१-१००३॥