Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 964
________________ ८५६ कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार करेदि । ११४०. ताधे कोधस्स पडमसंगहकिट्टीए संतकम्मं दो आवलियवंधा दुसमयणा सेसा, जं च उदयावलियं पविटं तं च सेसं पढमकिट्टीए । ११४१. ताधे कोहस्स विदियकिट्टीवेदगो। ११४२. जो कोहस्स पढमकिट्टि वेदयमाणस्स विधी सो चेव कोहस्स विदियकिटिं वेदयमाणस्स विधी कायव्यो । ११४३. तं जहा । ११४४. उदिण्णाणं किट्टीणं बज्झमाणीणं किट्टीणं, विणासिज्जमाणीणं अपुव्वाणं णिव्यत्तिज्जमाणियाणं बझमाणेण च पदेसग्गेण संछुन्भमाणेण च पदेसग्गेण णिव्यत्तिज्जमाणियाणं । ११४५. एत्थ संकममाणयस्स पदेसग्गस्स विधिं वत्तहस्सायो । ११४६. तं जहा । ११४७ कोधविदियकिट्टीदो पदेसग्गं कोहतदियं च माणपहमं च गच्छदि । ११४८. कोहस्स तदियादो किट्टीदो माणस्स परमं चेव गच्छदि । ११४९ माणस्स पडमादो किट्टीदो माणस्स विदियं तदियं, मायाए पडमं च गच्छदि । ११५०. माणस्स विदियकिट्टीदो माणस्स तदियं च मायाए पहमं च गच्छदि । ११५१. माणस्स तदियकिट्टीदो मायाए पढमं गच्छदि । ११५२. मायाए परमादो पदेसग्गं मायाए विदियं तदियं च, लोभस्स पढमकिट्टि च गच्छदि । ११५३. मायाए विदियादो किट्टीदो पदेसग्गं मायाए तदियं लोभस्स पडमं च गच्छदि । ११५४. मायाए तदियादो किट्टीदो पदेसग्गं लोभस्स पढमं गच्छदि । ११५५. लोमस्स परमादो किट्टीदो पदेसग्गं लोभस्स विदियं च तदियं च गच्छदि । ११५६. लोभस्स विदियादो पदेसग्गं लोभस्स तदियं गच्छदि। आवलीप्रमित नवकवद्ध प्रदेशाग्र शेप हैं, वे और उद्यावलीमे प्रविष्ट जो प्रदेशाग्र हैं वे प्रथम कृष्टिमें शेष रहते हैं। उस समय क्रोधकी द्वितीय कृष्टिका प्रथम समयवेदक होता है। क्रोधकी प्रथम कृष्टिको वेदन करनेवालेकी जो विधि कही गई है, वही विधि क्रोधकी द्वितीय कृष्टिको वेदन करनेवालेकी भी कहना चाहिए । वह इस प्रकार है-उदीर्ण कृष्टियोकी, बध्यमान कृष्टियोकी, विनाशकी जानेवाली कृष्टियोकी, बध्यमान प्रदेशाग्रसे निर्वत्यमान अपूर्वकृष्टियोकी तथा संक्रम्यमाण प्रदेशाग्रसे भी निर्वर्त्यमान अपूर्वकृष्टियोकी विधि प्रथम संग्रहकृष्टिकी प्ररूपणाके समान कहना चाहिए ।।११३९-११४४॥ ___चूर्णिमू०-अव यहॉपर संक्रम्यमाण प्रदेशाग्रकी विधिको कहेगे। वह विधि इस प्रकार है-क्रोधकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र क्रोधकी तृतीय और मानकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है । क्रोधकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र मानकी प्रथम कृष्टिको ही प्राप्त होता है। मानकी प्रथम कृष्टिसे प्रदेशाग्र मानकी द्वितीय और तृतीय तथा मायाकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है। मानकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र मानकी तृतीय और मायाकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है । मानकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र मायाकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है। मायाकी प्रथम कृष्टिसे प्रदेशाग्र मायाकी द्वितीय और तृतीय तथा लोभकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है। मायाकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र मायाकी तृतीय और लोभकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है । मायाकी तृतीय कृष्टिसे प्रदेशाग्र लोभकी प्रथम कृष्टिको प्राप्त होता है। लोभकी प्रथम कृष्टिसे प्रदेशाग्र

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