Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 967
________________ गा० २०६] चारित्रमोहक्षपक कृष्टिवेदकक्रिया-निरूपण ८५९ ११८७. तदियकिट्टि वेदेमाणस्स जा पडमहिदी तिस्से पढमहिदीए आवलियाए समयाहियाए सेसाए चरिमसमयकोधवेदगो । ११८८. जहण्णगो ठिदिउदीरगो । ११८९. ताधे द्विदिबंधो संजलणाणं दो मासा पडिवुण्णा । ११९०. संतकम्मं चत्तारि वस्साणि पुण्णाणि । ११९१. से काले माणस्स पहमकिट्टिमोकड्डियूण पढमद्विदिं करेदि । ११९२. जा एस्थ सव्वगाणवेदगद्धा तिस्से वेदगद्धाए तिभागमेत्ता पहमट्ठिदी। ११९३ तदो माणस्स पढमकिट्टि वेदेमाणो तिस्से पहमकिट्टीए अंतरकिट्टीणमसंखेज्जे भागे वेदयदि । ११९४. तदो उदिण्णाहितो विसेसहीणाओ बंधदि । ११९५. सेसाणं कसायाणं पढमसंगहकिट्टीओ बंधदि। ११९६. जेणेव विहिणा कोधस्स पढमकिट्टी वेदिदा, तेणेव विधिणा माणस्स पढमकिट्टि वेदयदि । ११९७. किट्टीविणासणे बज्झमाणएण संकामिज्जमाणए ण च पदेसग्गेण अपुव्वाणं किट्टीणं करणे किट्टीणं बंधोदयणिव्वग्गणकरणे एदेसु करणेसु णत्थि. णाणत्तं, अण्णेसु च अभणिदेसु । ११९८. एदेण कमेण माणपडमकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से पड महिदीए जाधे समयाहियावलियसेसा ताधे तिण्हं संजलणाणं ठिदिवंधो मासो वीसं च दिवसा अंतोसुहुत्तूणा । ११९९. संतकम्म तिण्णि वस्साणि चत्तारि मासा च अंतोमुहुत्तणा । चूर्णिसू०-तृतीय कृष्टिको वेदन करनेवालेकी जो प्रथम स्थिति है, उस प्रथम स्थितिमें एक समय अधिक आवलीके शेष रह जानेपर चरमसमयवर्ती क्रोधवेदक होता है और उसी समयमें ही संज्वलनक्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक होता है। उस समय चारो संज्वलन कषायोका स्थितिबन्ध परिपूर्ण दो मास है और स्थितिसत्त्व परिपूर्ण चार वर्षप्रमाण है ॥११८७-११९०॥ चूर्णिसू०-तदनन्तर समयमें मानकी प्रथम कृष्टिका अपकर्षण करके प्रथमस्थितिको करता है। यहॉपर जो संज्वलनमानका सर्ववेदककाल है, उस वेदककालके त्रिभागमात्र प्रथमस्थिति है । तव मानकी प्रथम कृष्टिको वेदन करनेवाला उस प्रथम संग्रहकृष्टिकी अन्तरकृष्टियोंके असंख्यात बहुभाग वेदन करता है और तभी उन उदीर्ण हुईं कृष्टियोंसे विशेप हीन कृष्टियोंको बॉधता है। तथा शेष कषायोकी प्रथम संग्रहकृष्टियोको ही बॉधता है। जिस विधिसे क्रोधकी प्रथम कृष्टिका वेदन किया है उस ही विधिसे मानकी प्रथम कृष्टिका वेदन करता है । कृष्टियोके विनाश करनेमे, बध्यमान और संक्रम्यमाण प्रदेशाप्रसे अपूर्वकृष्टियोके करनेमें, तथा कृष्टियोके बन्ध और उदयसम्बन्धी निर्वर्गणाकरणमे अर्थात् अनन्त गुणहानिरूप अपसरणोंके करनेमे, इतने करणोमे तथा अन्य नही कहे गये करणोम कोई विभिन्नता नहीं है । इस क्रमसे मानकी प्रथम कृष्टिको वेदन करनेवालेकी जो प्रथम स्थिति है, उस प्रथम स्थितिमें जब एक समय अधिक आवली शेप रहती है, तब तीनो संज्वलन कपायोका स्थितिबन्ध एक मास और अन्तर्मुहूर्त कम वीस दिवस है, तथा स्थितिसत्त्व तीन वर्प और अन्तर्मुहूर्त कम चार मास है ॥११९१-११९९॥

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