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गा० २१२ ]
चारित्रमोहक्षपक कृष्टिवेदक क्रिया- निरूपण
१३७६. एतो पंचमीए भासगाहाए समुत्तिणा । (१५९) जसणा मयुच्च गोदं वेदयदि नियमसा अनंतगुणं । गुणहीणमंतराय से काले से सगा भज्जा ॥ २१२ ॥
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१३७७. विहासा । १३७८. जसणाममुच्चा गोदं च अनंतगुणाए सेटीए वेदयदि । १३७९. सेसाओ णामाओ कथं वेदयदि १ १३८०, जसणामं परिणामपच्चइयं मणुस - तिरिक्खजोणियाणं । १३८१. जाओ असुभाओ परिणामपचगाओ ताओ अनंतगुणहीणाए सेडीए वेदयदिति ।
१३८२. अंतराइयं सव्यमणंतगुणहीणं वेदयदि । १३८३. भवोपग्गहियाओ णामाओ छबिहाए वड्डीए छव्विहाए हाणीए भजिदव्वाओ । १३८४. केवलणाणावर - णीयं केवलदसणावरणीयं च अनंतगुणहीणं वेदयदि । १३८५. सेसं चउन्विहं णाणावरणीयं जदि सव्वधादिं वेदयदि णियमा अनंतगुणहीणं वेदयदि । १३८६. अध देस
चूर्णिसू०- (० - अब इससे आगे पॉचवीं भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना की जाती है ॥ १३७६ ॥ कृष्टिवेदक क्षपक यशःकीर्ति नामकर्म और उच्चगोत्र कर्म इन दोनों कमोंके अनन्तगुणित वृद्धि रूप अनुभागका नियमसे वेदन करता है । अन्तराय कर्मके अनन्तगणित हानिरूप अनुभागका वेदन करता है । अनन्तर समय में शेष कर्मोंके अनुभाग भजनीय हैं ||२१२॥
चूर्णि सू० -
[0 - उक्त भाष्यगाथाकी विभापा इस प्रकार है - यशः कीर्ति नामकर्म और उच्चगोत्रकर्मको अनन्तगुणित श्रेणीसे वेदन करता है । ( सातावेदनीयको भी अनन्तगुणितश्रेणी वेदन करता है । ) ।। १३७७-१३७८ ॥
शंका - नामकर्मकी शेप प्रकृतियोको किस प्रकार वेदन करता है ? ॥१३७९ ॥ समाधान - मनुष्य और तिर्यग्योनिवाले जीवोके यश: कीर्ति नामकर्म परिणाम - प्रत्ययिक है । ( अतएव जितनी परिणाम विपाकी सुभग, आदेय आदि शुभ नामकर्म-प्रकृतियाँ हैं उन सबको अनन्तगुणित श्रेणी के रूपसे वेदन करता है । ) जो दुभंग, अनादेय आदि अशुभ परिणाम-प्रत्ययिक प्रकृतियाँ है उन्हें अनन्तगुणित हीन श्रेणीके द्वारा वेदन करता है ॥१३८०-१३८१॥
चूर्णिसू०-अन्तरायकर्मकी सर्व प्रकृतियोको अनन्तगुणित हीन श्रेणी के रूपसे वेदन
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करता है । भवोपग्रहिक अर्थात् भवविपाकी नामकर्मकी प्रकृतियोका छह प्रकारकी वृद्धि और छह प्रकारकी हानिके द्वारा अनुभागोदय भजितव्य है । केवलज्ञानावरणीय और केवलदर्शनावरणीय कर्मको अनन्तगुणित हीन श्रेणीके रूपसे वेदन करता है । शेष चार प्रकारका ज्ञानावरणीय कर्म यदि सर्वघातिरूपसे वेदन करता है, तो नियमसे अनन्तगुणित हीन वेदन करता है । यदि देशवातिरूपसे वेदन करता है, तो यहॉपर उनका अनुभागोदय छह प्रकारकी वृद्धि