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कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार १४४३. विहासा । १४४४. एसा वि गाहा पुच्छासुत्तं । १४४५. ओकड्डदि जे अंसे से काले किण्णु ते पवेसेदि, आहो ण ? वत्तव्वं । १४४६. पवेसेदि ओकड्डिदे च पुव्वयणंतरपुव्वगेण । १४४७. सरिसमसरिसे त्ति णाम का सण्णा ? १४४८. जदि जे अणुभागे उदीरेदि एक्किस्से वग्गणाए सव्चे ते सरिसा णाम । अध जे उदीरेदि अणेगासु वग्गणासु, ते असरिसा णाम । १४४९. एदीए सण्णाए से काले जे पवेसेदि ते असरिसे पवेसेदि ।
१४५०. एत्तो चउत्थीए भासगाहाए समुक्त्तिणा । १४५१. तं जहा । (१६९) उकड्डदि जे अंसे से काले किण्णु ते पवेसेदि ।
उक्कड्डिदे च पुव्वं सरिसमसरिसे पवेसेदि ॥२२२॥
चूर्णिसू०-उक्त भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है-यह गाथा भी पृच्छासूत्ररूप है। जिन अंशोंको अपकर्षण करता है, अनन्तर समयमें क्या उन्हें उदीरणामें प्रविष्ट करता है, अथवा नहीं ? उत्तर कहना चाहिए १ पूर्वमे अर्थात् अनन्तर पूर्ववर्ती समयमे अपकर्षण किये गये कर्म-प्रदेश तदनन्तर समयमे उदीरणाके भीतर प्रवेश करनेके योग्य हैं ।।१४४३-१४४६॥
शंका-सदृश और असहश इस नामकी संज्ञाका क्या अर्थ है ? ॥१४४७॥
समाधान-जितने अनुभागोको एक वर्गणाके रूपसे उदीर्ण करता है, उन सब अनुभागोंकी सदृशसंज्ञा है। और जिन अनुभागोको अनेक वर्गणाओंके रूपमे उदीर्ण करता है, उनकी असशसंज्ञा है ॥१४४८॥
भावार्थ-उद्यमे आनेवाली यदि सभी कृष्टियाँ एक कृष्टिस्वरूपसे परिणत होकर उदयमे आती हैं, तो उनकी सदृशसंज्ञा होती है और यदि उदयमे आनेवाली कृष्टियाँ अनेक वर्गणाओ या कृष्टियोके स्वरूपसे परिणमित होकर उद्यमे आती हैं तो वे असदृश संज्ञासे कही जाती हैं।
चूर्णिसू०-इस प्रकारको संज्ञाकी अपेक्षा अनन्तर समयमे जिन अनुभागोको उदयमें प्रविष्ट करता है, उन्हें असदृश ही प्रविष्ट करता है। अर्थात् उदयमे आनेवाली कृष्टियाँ अनेक वर्गणाओके रूपसे परिणमित हो करके ही उदयमें आती हैं ॥१४४९।।
चूर्णिसू०-अब इससे आगे चौथी भाष्यगाथाकी ससुत्कीर्तना की जाती है । वह इस प्रकार है ॥१४५०-१४५१॥
जिन कर्माशोंका उत्कर्षण करता है, उनको अनन्तर समयमें क्या उदीरणामें प्रवेश करता है ? पूर्व समयमें उत्कर्पण किये गये कर्माश अनन्तर समयमें उदीरणा करता हुआ सदृशरूपसे प्रविष्ट करता है, अथवा असदृशरूपसे प्रविष्ट करता है ॥२२२॥