Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 976
________________ ८६८ कसाय पाहुडे सुत्त [ १५ चारित्र मोह-क्षपणाधिकार १२८८. लोभस्स पढमकिट्टीदो लोभस्स चेव विदियसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८९. लोभस्स चेव परमसंगह किट्टीदो तस्स चेव तदियसंगह किट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२९०. कोहस्स पढमसंगह किट्टीदो माणस्स परमसंग किट्टी संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । १२९१. कोहस्स चेव पढमसंगह किट्टीदो कोहस्स चैव तदियसंगह किट्टीए संकपदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२९२. कोहस्स परम [ संगह- ] किट्टीदो कोहरस चेव विदियसंगह किट्टीए संक्रमदि पदेराग्यं संखेजगुणं । १२९३. एसो पदेससंकमो अडकतो वि उक्खेदिदो सुहुमसां पराइय किड्डीसु करमाणी आसओ त्ति काढूण | १२९४. सुहुमसां पराज्य किट्टीस पडमसमये दिज्जदि पदेसग्गं थोवं । विदियसमये असंखेज्जगुणं जाब चरिमसमयादोत्ति ताव असंखेज्जगुणं । १२९५. एदेण कमेण लोभस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमट्टिदी तिस्से पढमट्ठिदीए आवलिया समयाहिया सेसा ति तम्हि समये चरिमसमयवादरसांपराओ । १२९६. तम्हि चेव समये लोभस्स चरिमवादरसांपराइय किट्टी संकुम्भमाणा संछुद्धा । १२९७ लोभस्स अधिक प्रदेशाय संक्रमण करता है । मायाकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे विशेष अधिक प्रदेशाय संक्रमण करता है । लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभको ही द्वितीय संग्रहकृष्टिमे विशेष अधिक प्रदेशाय संक्रमण करता है । लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे उसकी ही तृतीय संग्रहकृष्टि विशेष अधिक प्रदेशाय संक्रमण करता है । क्रोध की प्रथम संग्रहकृष्टि से मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संख्यातगुणित प्रदेशाय संक्रमण करता है । क्रोधकी ही प्रथम संग्रहकृष्टिसे कोकी ही तृतीय संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाय संक्रमण करता है । क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे क्रोधकी ही द्वितीय संग्रहकृष्टिमे संख्यातगुणित प्रदेशाय संक्रमण करता है । यह बादरकृष्टि सम्बन्धी प्रदेशाग्र- संक्रमण यद्यपि अतिक्रान्त हो चुका है, तथापि की जानेवाली सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोमें आश्रयभूत मान करके पुनः कहा गया है ॥१२८०-१२९३॥ चूर्णिसू०-सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियो में प्रथम समयमें अल्प प्रदेशाग्र दिया जाता है । द्वितीय समयमें असंख्यातगुणित प्रदेशाग्र दिया जाता है। इस प्रकार वादरसाम्परायिक के अन्तिम समय तक असंख्यातगुणित प्रदेशाय दिया जाता है । इस क्रमसे लोभकी द्वितीय कृष्टिको वेदन करनेवालेके जो प्रथमस्थिति है उस प्रथमस्थितिमें जिस समय एक समय अधिक आवली शेप रहती है, उस समय में वह चरमसमयवर्ती वादरसाम्परायिक होता है । उस ही समयमे अर्थात् अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके अन्तिम समय में लोभकी संक्रम्यमाण चरम वादरसाम्परायिककृष्टि सामस्त्यरूपसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियो में संक्रान्त हो जाती है । लोभकी १ पुणरुक्खिविदू भणिदो । पुणरुच्चाइदूण भणिदो त्ति वृत्तं होइ । जयध०

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