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कसाय पाहुड सुत्त
[१५ चारित्र मोह-क्षपणाधिकार जा विदियसमये जहणिया सुमसांपराइय किट्टी तिस्से पदेसग्गं दिज्जदि बहुअं । १२६३. विदयाए किट्टीए अनंतभागहीणं । १२६४. एवं गंतूण पढमसमये जा जहणिया सुमसांप इय किट्टी तत्थ असंखेज्जदिभागहीणं । १२६५. तत्तो अनंतभागहीणं जाव अपुच्वं णिव्वत्तिज्जमाणगं ण पावदि । १२६६. अपुच्चाए णिव्यत्तिज्ज - माणिगाए किट्टीए असंखेज्जदिभागुत्तरं । १२६७ पुव्यणिव्यत्तिदं पडिवज्जमाणगस्स पदेसग्गस्स असंखेज्जदिभागहीणं । १२६८ परं परं पडिवज्जमाणगस्स अनंतभागहीणं । १२६९. जो विदियसमए दिज्जमाणगस्स पदेसग्गस्स विधी सो चेव विधी सेसेसु विसमएसु जाव चग्मिसमयवादरमांपराइयो त्ति ।
१२७०. सुहुमसां पराइयकिट्टीकारगस्स किट्टीसु दिस्समाणपदेसग्गस्स सेटपरूवणं । १२७१. तं जहा । १२७२. जहणियाए सुहुमसां पराध्य किट्टीए पदेसग्गं बहुगं । तत्तो अनंतभागहीणं जाव चरिमसुहुमसांपराइयकिट्टि ति । १२७३ तदो जहणियाए बादरसां पराध्यकिट्टीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । १२७४ एसा सेढिपरूवणा जाव चरिमसमयवादरसांपराओ ति । १२७५. परमसमयसु हुमसांप राइयस्स वि किट्टी दिस्समाणपदेसग्गस्स सा चेव सेढिपरूवणा । १२७६. णवरि सेचीयादो' जदि द्वितीय समयमे जो जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि है, उसमे बहुत प्रदेशाग्र दिया जाता है । द्वितीय कृष्टिमे अनन्तवे भागसे हीन दिया जाता है । इस क्रमसे जाकर प्रथम समय में जो जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि है, उसमे असंख्यातवें भागसे हीन प्रदेशाय दिया जाता है । और इसके आगे निर्वर्त्यमान अपूर्वकृष्टि जव तक प्राप्त नहीं होती है, तब तक अनन्तवे भागसे हीन प्रदेशाम दिया जाता है । अपूर्व निर्वर्त्यमान कृष्टिमें असंख्यातवें भाग अधिक प्रदेशा दिया जाता है । पूर्व निर्वर्तित कृष्टिको प्रतिपद्यमान प्रदेशाप्रका असंख्यातवाँ भाग हीन दिया जाता है । इससे आगे उत्तरोत्तर प्रतिपद्यमान प्रदेशाग्रका अनन्तवा भाग हीन दिया जाता है । द्वितीय समयमे दिये जानेवाले प्रदेशाग्रकी जो विधि पहले कही गई है, वही विधि शेष समयोमे भी जानना चाहिए। और यह क्रम बादरसाम्परायिकके चरम समय तक ले जाना चाहिए ।। १२६१-१२६९।।
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चूर्णिसू (० - अब सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि-कारककी कृष्टियोमे दृश्यमान ( दिखाई देने वाले) प्रदेशाकी श्रेणीप्ररूपणा की जाती है । वह इस प्रकार है - जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें दृश्यमान प्रदेशा बहुत है । इससे आगे चरम सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टि तक वह दृश्यमान प्रदेशा अनन्तवें भागसे हीन है । तदनन्तर जघन्य बादरसाम्परायिक कृष्टिमें प्रदेशाय असंख्यातगुणा है । यह श्रेणी प्ररूपणा ( सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि- कारक के प्रथम समयसे लगाकर ) चरमसमयवर्ती वादरसाम्परायिक तक करना चाहिए ॥१२७०-१२७४॥ चूर्णिसू०10- प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिककी भी कृष्टियो में दृश्यमान प्रदेशाग्रकी
१ सेचीयादो सेचीयसंभवमस्सियूण, सभवसच्चमस्तियूण | जयध०