________________
८७०
कसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार चरिमादो अंतरविदीदो पुव्चसमये जा विदियट्टिदी तिस्से आदिद्विदीए दिज्जमाणगं पदेसग्गं संखेज्जगुणहीणं १३१२. तत्तो विसेसहीणं ।
१३१३. पडमसमयसुहुमसांपराइयस्स जमोकड्डिजदि पदेसग्गं तमेदीए सेडीए णिक्खिवदि । १३१४. विदियसमए वि एवं चेव, तदियसमए वि एवं चेव । एस कमो ओकड्डिदण णिसिंचमाणगस्स पदेसग्गस्स ताव जाव सुहुमसांपराइयस्स पढमद्विदिखंडयं णिल्लेविदं ति । १३१५. विदियादो ठिदिखंडयादो ओकड्डियूण [जं] पदेसग्गमुदये दिज्जदि तं थोवं । १३१६. तदो दिज्जदि असंखेज्जगुणाए सेढीए ताव जाव गुणसेढिसीसयादो उपरिमाणंतरा एक्का हिदि त्ति। १३१७ तदो विसेसहीणं । १३१८. एत्तो पाए सुहुमसांपराइयस्स जाव मोहणीयस्स हिदिघादो ताव एस कमो ।
१३१९. पढमसमयसुहुमसांपराइयस्स जं दिस्सदि पदेसग्गं तस्स सेढिपरूवणं वत्तहस्सामो । १३२०. तं जहा । १३२१. पढमसमयसुहुयसांपराइयस्स उदये दिस्मदि पदेसग्गं थोवं । विदियाए द्विदीए असंखेज्जगुणं दीसदि । (एवं) ताव जाव (गुणसेढिसीसयं ति । ) गुणसेढिमीसयादो अण्णा च एका हिदि त्ति । १३२२ तत्तो विसेसहीणं ताव जाव चरिमअंतरहिदि त्ति । १३२३ तत्तो असंखेज्जगुणं । १३२४. तत्तो अन्तिम स्थिति नहीं प्राप्त हो जाती है । चरम अन्तरस्थितिसे पूर्व समयमें जो द्वितीय स्थिति है, उसकी प्रथम स्थितिमे दीयमान प्रदेशाग्र संख्यातगुणित हीन है। इससे आगे उपरिम स्थितिमे दीयमान प्रदेशाग्र विशेप हीन है ॥१३०४-१३१२॥
चूर्णिसू०-प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक जिस प्रदेशाप्रका अपकर्षण करता है, उसे इसी श्रेणीके क्रमसे देता है। द्वितीय समयमे भी इसी क्रमसे देता है और तृतीय समयमें भी इसी क्रमसे देता है। इस प्रकार अपकर्षण करके निपिच्यमान प्रदेशाग्रका यह क्रम तव तक जारी रहता है, जब तक कि सूक्ष्मसाम्परायिकका प्रथम स्थितिकांडक निर्लेपित ( समाप्त ) होता है। द्वितीय स्थितिकांडकसे अपकर्षण कर जो प्रदेशाग्र उदयमें दिया जाता है, वह अल्प है। इससे आगे असंख्यातगुणित श्रेणी के क्रमसे तव तक प्रदेशाग्र दिया जाता है, जब तक कि गुणश्रेणीशीर्षसे उपरिम एक अनन्तर स्थिति प्राप्त होती है। इससे आगे विशेष हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है । इस स्थलसे लगाकर सूक्ष्मसाम्परायिकके जब तक मोहनीयकर्मका स्थितिघात होता है. तब तक यह क्रम जारी रहता है ॥१३१३-१३१८॥
चूर्णिसू०-प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके जो प्रदेशाग्र दिखाई देता है, उसकी श्रेणीप्ररूपणाको कहेगे। वह इस प्रकार है-प्रथम समयमे सूक्ष्मसाम्परायिकके उदयमे अल्प प्रदेशाग्र दिखाई देता है। द्वितीय स्थितिमे असंख्यातगुणित प्रदेशाग्र दखाई देता है। इस प्रकार यह क्रम गुणश्रेणीशीर्ष तक जारी रहता है। तथा गुणश्रेणीशीर्षसे आगे अन्य एक स्थिति तक जारी रहता है। इससे आगे चरम अन्तर-स्थिति तक विशेष हीन प्रदेशाग्र दिखाई देता है। तदनन्तर असंख्यातगुणित प्रदेशान दिखाई देता है। तत्पश्चात विशेष हीन प्रदे