Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 973
________________ गा० २०६ ] चारित्रमोहक्षपक कृष्टि वेदकक्रिया -निरूपण ८६५ थाए सव्विस्से सुहुमसां पराइय किट्टीकरणद्धाए अपुव्वाओ सुहुमसांपराइयकिडीओ असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए की रंति । १२४७ सुहुमसांपराइय किट्टीसु जं परमसमये पदेसग्गं दिज्जदि तं थवं । १२४८ विदियसमये असंखेज्जगुणं । १२४९ एवं जाव चरिमसमयादोत्ति असंखेज्जगुणं । 1 १२५०. सुहुमसां पराइय किट्टीसु पढमसमये दिज्जमाणगस्त पदेसग्गस्स सेटिपरूवणं वत्तइस्लामो । १२५१ तं जहा । १२५२. जहणियाए किट्टीए पदेस बहुअं । विदिया विसेसहीणमणंतभागेण । तदियाए विसेसहीणं । एवमणंतरोवणिधाए गंतूण चरिमाए हुमसां पराइयकिट्टीए पदेसग्गं विसेसहीणं । १२५३ चरिमादो सुमसांपराइयकिट्टीदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए दिज्जमाणगं पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं । १२५४. तदो विसेसहीणं । १२५५. सुहुमसांपराइय किट्टीकारगो विदियसमये अपुव्बाओ सुहुमसांपराइयकिट्टीओ करेदि असंखेज्जगुणहीणाओ । १२५६ ताओ दोसुट्ठाणेसु करेदि । १२५७. तं जहा । १२५८. पढमसमये कदाणं हेट्ठा च अंतरे च । १२५९ हेट्ठा थोवाओ । १२६०. अंतरेस असंखेज्जगुणाओ । १२६१ विदियसमये दिज्जमाणगस्स पदेसग्गस्स सेढिपरूवणा । १२६२. अनन्तरोपनिधारूप श्रेणीकी अपेक्षा सम्पूर्ण सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरण के काल मे अपूर्वं सूक्ष्मसाम्पायिक कृष्टियॉ असंख्यातगुणित हीन श्र ेणीके क्रमसे की जाती है । प्रथम समयमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोके भीतर जो प्रदेशाग्र दिया जाता है, वह स्तोक है । द्वितीय समयमे दिया जानेवाला प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । इस प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरणकालके अन्तिम समय तक असंख्यातगुणा प्रदेशाय दिया जाता है || १२४४-१२४९॥ चूर्णिसू०- 2- अब सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोमे प्रथम समय मे दिये जानेवाले प्रदेशाग्रकी श्रेणीप्ररूपणा करेंगे । वह इस प्रकार है - जघन्य कृष्टिमे प्रदेशाय बहुत दिया जाता है । द्वितीय कृष्टिमे अनन्तवे भागसे विशेष हीन प्रदेशाय दिया जाता है । तृतीय कृष्टिमे अनन्तवें भागसे विशेष हीन प्रदेशाय दिया जाता है । इस प्रकार अनन्तरोपनिधारूप श्रेणी के क्रमसे लगाकर अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि तक प्रदेशाय विशेष-हीन विशेष - हीन दिया जाता है । अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिसे जघन्य वादरसाम्परायिक कृष्टिमे दिया जानेवाला प्रदेशा असंख्यातगुणित हीन है । पुनः इसके आगे अन्तिम वादरसाम्परायिक कृष्टि तक सर्वत्र अनन्तवे भागसे विशेष हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है । सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि- कारक द्वितीय समयमें असंख्यातगुणित हीन अपूर्व सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों को करता है । उन कृष्टियों को वह दो स्थानोमे करता है । यथा - प्रथम समयमे की गई कृष्टियोके नीचे और अन्तरालमे भी । कृष्टियोके नीचे की जानेवाली कृष्टियाँ थोड़ी होती हैं और अन्तरालोमे की जानेवाली कृष्टिया असंख्यातगुणी होती हैं ।। १२५०-१२६०॥ चूर्णिसू ● (० - अब द्वितीय समयमे दिये जानेवाले प्रदेशायकी श्रेणीप्ररूपणा करते हैं १०९

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