Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 975
________________ गा० २०६] चारित्रमोहक्षपक-कृष्टिवेदकक्रिया-निरूपण ८६७ बादरसांपराइयकिट्टीओ धरेदि तत्थ पदेसग्गं विसेसहीणं होन्ज । १२७७. सुहुमसांपराइयकिट्टीसु कीरमाणीसु लोभस्स चरिमादो बादरसांपगइयकिट्टीदो सुहुमसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं थोवं । १२७८. लोभस्स विदियकिट्टीदो चरिमवादरसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । १२७९. लोभस्स विदियकिट्टीदो सुहुमसांपराइयकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं संखेज्जगुणं । १२८०. पढमसमय किट्टीवेदगस्स कोहस्स विदियकिट्टीदो माणस्स पडमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं थोवं । १२८१. कोहस्स तदियकिट्टीदो माणस्स पडमाए संगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८२. माणस्स पढमादो [ संगह-] किट्टीदो मायाए पढमकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८३. माणस्स विदियादो संगहकिट्टीदो मायाए पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८४. माणस्स तदियादो संगहकिट्टीदो मायाए पढमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८५. मायाए परमसंगहकिट्टीदो लोभस्स पहमसंगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८६. मायाए विदियादो संगहकिट्टीदो लोभस्स पहमाए [संगहकिट्टीए ] संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । १२८७. मायाए तदियादो संगहकिट्टीदो लोभस्स पडमाए संगहकिट्टीए संकमदि पदेसग्गं विसेसाहियं । यह उपयुक्त ही श्रेणीप्ररूपणा है। केवल इतनी विशेषता है कि यदि वह सेचीयसे अर्थात् संभावना-सत्यसे बादरसाम्परायिक-कृष्टियोको धारण करता है, तो वहॉपर प्रदेशाग्र विशेष हीन होगा। की जानेवाली सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें लोभकी चरम वादरसाम्परायिक कृष्टिसे सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टिमें अल्प प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। लोभकी द्वितीय कृष्टिसे चरम बादरसाम्परायिक कृष्टिमे संख्यातगुणित प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। ( इसका कारण यह है कि लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टिके प्रदेशाग्रसे द्वितीय संग्रहकृष्टिके प्रदेशाग्र संख्यातगुणित हैं। ) लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें सख्यातगुणित प्रदेशाग्र संक्रमण करता है ॥१२७५-१२७९॥ __ चूर्णिसू०-प्रथम समयवर्ती कृष्टिवेदकके अर्थात् कृष्टिकरणकालके समाप्त होनेपर अनन्तर कालमे क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिका अपकर्षण कर उसका वेदन करनेवालेके क्रोधकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें अल्प प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। क्रोधकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। मानकी प्रथम संग्रहकृष्टि से मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। मानकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि में विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। मानकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशान संक्रमण करता है। मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमण करता है। मायाकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें विशेष

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