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कसाय पाहुड सुत्त
[ १५ चारित्र मोह-क्षपणाधिकार
संखेज्जाणि वस्ससहसाणि । १२३२. सेसाणं कम्पाणं असंखेज्जाणि वस्त्राणि ।
१२३३. तत्तो से काले लोभस्स विदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमद्विदिं करेदि । १३३४. ताधे चेव लोभस्स विदियकिट्टीदो च तदियकिट्टीदो च पदेसग्गमोकड्डियूण सुहुमसांपराइयकिट्टीओ' णाम करेदि । १२३५. तासि सुहुमसांपराइयकिट्टीणं कम्हि द्वाणं ११२३६. तासि द्वाणं लोभस्स तदियाए संगहकिट्टीए हेइदो । १२३७. जारिसी कोहस्स पढमसंगह किट्टी, तारिसी एसा सुहुमसां पराइय किट्टी । है । घातिया कर्मोंका स्थितिसत्त्व संख्यात सहस्र वर्ष है । शेष कर्मोंका स्थितिसत्त्व असंख्यात वर्ष है ।। १२२५- १२३२॥
चूर्णिस् ० - तत्पश्चात् अनन्तरकालमे लोभकी द्वितीय कृष्टिसे प्रदेशाप्रका अपकर्पण करके प्रथम स्थितिको करता है । उस ही समय में लोभकी द्वितीय कृष्टिसे और तृतीय कृष्टि से भी प्रदेशाग्रका अपकर्षण करके सूक्ष्मसाम्परायिक नामवाली कृष्टियोंको करता है ।।१२३३-१२३४॥
शंका-उन सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका अवस्थान कहाँ है ? || १२३५ ॥ समाधान- उनका अवस्थान लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टि के नीचे है | १२३६॥
विशेषार्थ -संज्वलन लोभकपायके अनुभागको बादरसाम्परायिक कृष्टियोंसे भी अनन्तगुणित हानिके रूपसे परिणसित कर अत्यन्त सूक्ष्म या मन्द अनुभागरूपसे अवस्थित करनेको सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरण कहते हैं । सर्व- जघन्य बादरकृष्टिसे सर्वोत्कृष्ट सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टिका भी अनुभाग अनन्तगुणित हीन होता है । इसी बात को चूर्णिकारने उक्त शंका-समाधानसे स्पष्ट किया है कि सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोका स्थान लोभकी तृतीय संग्रहकृष्टि के नीचे है । इन सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोकी रचना संब्वलन - लोभकी द्वितीय और तृतीय कृष्टि के प्रदेशाको लेकर होती है । लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिका वेदन करनेवाला उस कृष्टि वेदनके प्रथम समयमें ही सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोकी रचना करना प्रारंभ करता है । यदि संज्वलनलोभके द्वितीय त्रिभागमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोकी रचना प्रारम्भ न करे, तो तृतीय त्रिभागमे सूक्ष्मकृष्टिके वेदकरूपसे परिणमन नही हो सकता है ।
अब चूर्णिकार सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोके आयाम विशेषको वतलाते हुए उसका और भी स्पष्टीकरण करते हैं
चूर्णिसू० - जैसी संज्वलन क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि है, वैसी ही यह सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि भी है ॥। १२३७॥
विशेषार्थ - इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टि शेष संग्रहकृष्टियोके आयामको देखते हुए अपने आयामसे द्रव्यमाहात्म्यकी अपेक्षा संख्यातगुणी थी, उसी प्रकार यह सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टि भी क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिको छोड़कर
१ सुहुमसापराइयकिट्टीण किं लक्खणमिदि चे बादरसापराइयकिट्टीहिंतो अनंतगुणहाणीए परिणमिय लोभसजलणाणुभागस्सावट्ठाणं सुहुमसापराइयकिट्टीणं लक्खणमवहारेयव्वं । जयध०