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गा० २०३ | चारित्रमोहक्षपक-कृष्टिवेदकक्रिया-निरूपण
८४१ ९८०. विदियाए भासगाहाए अत्थो जहावसरपत्तो। ९८१. तं जहा । ९८२. समयपबद्धसेसयमेक्किस्से द्विदीए होज्ज, दोसु तीसु वा, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जभागेसु ।
९८३. णिल्लेवणहाणाणमसंखेज्जदिमागे समयपबद्धसेसयाणि । ९८४. समयपबद्धसेसयाणि एक्कम्मि द्विदिविसेसे जाणि ताणि थोवाणि । ९८५. दोसु हिदिविसेसेसु विसेसाहियाणि । ९८६. तिसु द्विदिविसेसेसु विसेसाहियाणि । ९८७. पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे जवमझ । ९८८. णाणंतराणि थोवाणि । ९८९. एगंतरमसंखेजगुणं । करना असंगत है। हॉ, यह नानास्थितिविशेष-विषयक प्ररूपणा द्वितीय भाष्यगाथामें निबद्ध दृष्टिगोचर होती है, अतः वहॉपर की जा सकती है । इसलिए यहॉपर तो हमारे द्वारा कही गई एकस्थितिविशेष-विषयक यवमध्यप्ररूपणा ही करना चाहिए।
चूर्णिसू०-अब अभव्यसिद्धोंकी अपेक्षा दूसरी भाष्यगाथाके अर्थका अवसर प्राप्त हुआ है। वह इस प्रकार है-समयप्रबद्ध-शेष एक स्थितिविशेषमे हो सकता है, दो स्थितिविशेषोंमें भी हो सकता है, तीन स्थितिविशेषोमे भी हो सकता है, इस प्रकार एकएकके क्रमसे बढ़ते हुए उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यात भागप्रमित स्थितिविशेषोमें हो सकता है ॥९८०-९८२॥
विशेषार्थ-यहाँ इतना विशेष ज्ञातव्य है कि भव्यसिद्धोंके उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्वप्रमित स्थितियोमें समयप्रबद्ध-शेष पाये जाते हैं और अभव्यसिद्धोके उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमित स्थितियोंमे समयप्रबद्ध-शेष पाये जाते हैं। एक वात यह भी जानने योग्य है कि यह सूत्र एकसमयप्रबद्ध-शेषकी प्रधानतासे कहा गया है, क्योकि नानासमयप्रबद्ध-शेषोकी प्रधानता करनेपर तो जघन्यतः एक स्थितिमें उनका रहना असंभव है।
___ अब इन पल्योपमके असंख्यात-भागप्रमित स्थितिविशेषोका निर्लेपनस्थानोकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहते है
चूर्णिसू०-निर्लेपनस्थानोका जितना प्रमाण है, उनके असंख्यातवे भागमे समयप्रबद्ध-शेष पाये जाते हैं। (इसका अभिप्राय यह है कि नाना समयप्रबद्ध-शेष और एक समयप्रवद्ध-शेषसे अविरहित सर्व स्थितिविशेषोका प्रमाण निर्लेपनस्थानोके असंख्यातवे भागप्रमाण है, इससे अधिक नही है। ) जो समयप्रबद्ध-शेष एक स्थितिविशेषमे पाये जाते हैं, वे सबसे कम हैं। दो स्थितिविशेषोमे पाये जानेवाले समयप्रबद्ध-शेष विशेष अधिक हैं । तीन स्थितिविशेषोंमें पाये जानेवाले समयप्रबद्ध-शेष विशेष अधिक हैं । इस प्रकार विशेष अधिकके क्रमसे बढ़ते हुए पल्योपमके असंख्यातवे भागमे समयप्रवद्ध-शेपोंका यवमध्य प्राप्त होता है। यवमध्यसे अधस्तन और उपरिम भागमे नाना गुणहानिस्थानान्तर अल्प हैं । ( क्योकि, उनका प्रमाण पल्योपमके अर्धच्छेदोके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणित हैं । (क्योकि, उनका प्रमाण असंख्यात पल्योपमोके प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। ) इस समय
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