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गा० २०३] चारित्रमोहक्षपक-कृष्टिवेदकक्रिया-निरूपण
८४७ वा दो वा तिणि वा, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । १०३१. एदेण वि जवमझं । १०३२ एक्कक्केण णिल्लेविज्जति ते थोवा । १०३३. दोणि णिल्लेविज्जति विसेसाहिया । १०३४ तिण्णि णिल्लेविज्जति विसेसाहिया । १०३५. एवं गंतूण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागे दुगुणा ।
१०३६.णाणंतराणि थोवाणि । १०३७, एक्कंतरछेदणाणि वि असंखेजगुणाणि ।
१०३८. अप्पाबहुअं। सव्वत्थोवमणुसमयणिल्लेवणकंडयमुक्कस्सयं । १०३९. जे एगसमएण णिल्लेविजंति भवबद्धा ते असंखेज्जगुणा । १०४०. समयपवद्धा एगसमएण णिल्लेविज्जंति असंखेज्जगुणा । १०४१. समयपबद्धसेसएण विरहिदाओ णिरंवे एक भी होते हैं, दो भी होते हैं, तीन भी होते है । (इस प्रकार एक-एक कर बढ़ते हुए)
उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक होते हैं। ( यह प्ररूपणा क्षपक और अक्षपक . दोनोके लिए समान जानना चाहिए।) इस प्ररूपणामे भी यवमध्यरचना होती है । ( वह
इस प्रकार है-) जो समयप्रबद्ध या भवबद्ध एक-एकके रूपसे निर्लेपित किये गये है, वे सबसे कम है। जो समयप्रबद्ध या भवबद्ध दो-दोके रूपसे निर्लेपित किये गए है, वे विशेष अधिक है। जो समयप्रबद्ध या भवबद्ध तीन-तीनके रूपसे निर्लेपित किये गये है, वे विशेष अधिक हैं । इस प्रकार विशेष अधिककी वृद्धिसे निर्लेपित किये गये समयप्रवद्धो या भववद्धोका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमित काल आगे जानेपर दुगुना हो जाता है ॥१०३०-१०३५॥
विशेषार्थ-इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमित दुगुण-वृद्धिरूप स्थानोंके व्यतीत होनेपर यवमध्य प्राप्त होता है। उससे ऊपर विशेष हीनके क्रमसे असंख्यात गुणहानिरूप स्थान जानेपर प्रकृत यवमध्यप्ररूपणाका चरम विकल्प प्राप्त होता है। यवमध्यके अधस्तन सकल अध्वानोसे उपरिम सकल अध्वान असंख्यातगुणित होते है। तथा अधस्तन दुगुणवृद्धिशलाकाओसे उपरिम दुगुणवृद्धिशलाकाएँ भी असंख्यातगुणी होती है, इतना विशेष जानना चाहिए।
___ अब इस यवमध्यप्ररूपणा-सम्बन्धी नानागुणहानिशलाकाओका और एकगुणहानिस्थानान्तरका प्रमाण बतलाते हैं
चूर्णिसू०-नानान्तर अर्थात् नानागुणहानिशलाकाएँ (पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमित होकरके भी वक्ष्यमाणपदकी अपेक्षा ) अल्प हैं। इनसे एकान्तरच्छेद अर्थात् एक गुणहानिस्थानान्तरकी अर्धच्छेद-शलाकाएँ असंख्यातगुणित है ॥१०३६-१०३७।।
___चूर्णिस०-अब उपर्युक्त समस्त पदोका अल्पबहुत्व कहते है-उत्कृष्ट अनुसमय निर्लेपनकाण्डक अर्थात् प्रतिसमय निर्लेपित होनेवाले समयप्रवद्धो या भवबद्धोका उत्कृष्ट निर्लेपनकाल ( आवलीके असंख्यातवें भागप्रमित होकरके भी वक्ष्यमाण पदोंकी अपेक्षा ) सबसे कम है । जो भववद्ध एक समयके द्वारा निर्लेपित किये जाते हैं वे असंख्यातगुणित