Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 952
________________ कसाय पाहुड सुन्त [ १५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार १००४. जहा समयबद्ध सेसयाणि, तहा भवबद्धसेसाणि कादव्वाणि । १००५. एवं चउत्थीए गाहाए अत्थो समत्तो भवदि । १००६. अट्ठमीए मूलगाहाए विहासा समत्ता भवदि । १००७. इमा अण्णा अभवसिद्धियपाओग्गे परूवणा । १००८. तं जहा । १००९. भववद्धाणं णिल्लेवणङ्काणं जहण्णगं समयपत्रद्धस्स पिल्लेवणडाणाणं जहण्णयादो असंखेज्जाओ द्विदीओ अब्भुस्सरिदूण | ૮૩૩ चूर्णिसू० - जिस प्रकार से समयप्रबद्ध-शेपोकी यह प्ररूपणा की है, इसी प्रकार से भववद्धशेषोंकी भी सामान्य असामान्य स्थितियोंके अन्तर आदिकी प्ररूपणा करनी चाहिए । इस प्रकार चौथी भाष्यगाथाका अर्थ समाप्त होता है। और उसके साथ ही आठवीं मूलगाथा - की विभाषा भी समाप्त होती है ॥१००४ -१००६॥ है चूर्णिसू ० - अव अभव्यसिद्ध जीवोंके योग्य विपयमे यह अन्य प्ररूपणा की जाती । वह इस प्रकार है- भववद्ध समयप्रवद्धों का जघन्य निर्लेपनस्थान प्रथम समय-वद्ध समयप्रवद्धके जघन्य निर्लेपनस्थान से असंख्यात स्थितियाँ आगे जाकर प्राप्त होता है ॥१००७ - १००९ ॥ विशेपार्थ- पहले यह बताया जा चुका है कि अभव्यसिद्ध जीवोके योग्य निर्लेपनस्थानोंका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भाग है । अब यह बताया जाता है कि जिस समय समयप्रवद्धका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है, उस समय भवबद्धका भी जघन्य निर्लेपनस्थान नही होता है किन्तु उससे असंख्यात स्थितियाँ आगे जाकर होता है । इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है— अन्तर्मुहूर्तकी आयुवाले किसी सम्मूच्छिम मनुष्य या तियंचके उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय तक प्रति समय वॅधनेवाले समयप्रबद्धोके समुदायको भववद्ध समयप्रबद्ध कहते हैं । इन भवबद्ध समयप्रवद्धोका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त के जितने समय होते हैं, तत्प्रमाण है । उक्त जीवके उस भवमें जन्म लेनेके प्रथम समयमे जो सर्वजघन्य कर्म- प्रदेशपिंड वंधा, वह क्रमशः कर्मस्थितिके असंख्यात भागों में आगमाविरोधसे निजीर्ण होता हुआ जिस समयमें निःशेषरूपसे गलित होता है, वह प्रथम समय-वद्ध समयप्रबद्धका जघन्य निर्लेपनस्थान कहलाता है । उस समय भववद्ध समयप्रवद्धोका प्रमाण एक समय प्रवद्ध कम अन्तर्मुहूर्त प्रमित भवबद्ध समयप्रवद्ध प्रमाण है । तदनन्तर प्रथम समयमे बँधे हुए समयप्रवद्धके निर्लेपित होनेपर पुनः शेष समयोन अन्तर्मुहूर्तमात्र समयप्रबंद्ध जिस समय में निःशेषरूपसे गलकर निर्लेपित हो जायेंगे, उस समयमे भववद्धका जघन्य निर्लेपनस्थान होगा । अतएव दोनोके जघन्य निर्लेपनस्थान एक साथ नहीं होते हैं । इसलिए यह निष्कर्ष निकला १ तिरिक्खस्स मणुस्सस्स वा अतोमुहुत्ता उगभवे उप्पजिदूण बंधमाणस्स जाव तमाउअं समप्पइ ताव तम्मि भवम्मि बद्धसमयपत्रद्धा अतोमृहुत्तमेत्ता भवति । तदो एत्तियमेत्तसमयपवद्वाण समूहमेकदो कादून गहिदे एग भववइयं णाम भण्णदे | जयध०

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