Book Title: Kasaya Pahuda Sutta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 908
________________ ८०० फसाय पाहुड सुत्त [१५ चारित्रमोह-क्षपणाधिकार तरेण गंतूण चरिमकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६१७. लोभस्स चेव विदियाए संगहकिट्टीए पडमकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६१८. एवमणंतराणंतरेण जाव चरिमादो त्ति अणंतगुणं । ६१९. लोभस्स चेव तदियाए संगहकिट्टीए पढमकिट्टीअंतरयणंतगुणं । ६२०. एवमणंतराणंतरेण गंतूण चरिमकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६२१. एत्तो मायाए पढमसंगहकिट्टीए पढमकिट्टीअंतरमणंतगुणं। ६२२. एवमणंतराणंतरेण मायाए वि तिण्हं संगहकिट्टीणं किट्टिअंतराणि जहाकमेण अणंतगुणाए सेढीए णेदव्याणि । ६२३. एत्तोमाणस्स पढमाए संगहकिट्टीए पहमकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६२४. माणस्स वि तिण्हं संगहकिट्टीणमंतराणि जहाकमेण अणंतगुणाए सेढीए णेदव्याणि । ६२५. एत्तो कोधस्स पहमसंगहकिट्टीए पहमकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६२६. कोहस्स वि तिण्ह संगहकिट्टीणमंतराणि जहाकमेण जाव चरिमादो अंतरादो त्ति अणंतगुणाए सेडीए णेदव्याणि । ६२७. तदो लोभस्स पहमसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६२८. विदियसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं। ६२९. तदियसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६३०. लोभस्स मायाए च अंतरमणंतगुणं । ६३१. मायाए पढमसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६३२. विदियसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६३३. तदियसंगहकिट्टीअंतरमणंतगुणं । ६३४. मायाए माणस्स प्रकार अनन्तर-अनन्तररूपसे जाकर अन्तिम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है । लोभकी ही द्वितीय संग्रहकृष्टिमे प्रथम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है । इस प्रकार अनन्तर-अनन्तररूपसे अन्तिम कृष्टि-अन्तर तक अनन्तगुणा अन्तर जानना चाहिए । पुनः लोभकी ही तृतीय संग्रहकृष्टिमे प्रथम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। इस प्रकार अनन्तर-अनन्तर रूपसे जाकर अन्तिम कृष्टिअन्तर अनन्तगुणा है ॥६०८-६२०॥ चूर्णिसू०-यहाँसे आगे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे प्रथम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है । इस प्रकार अनन्तर-अनन्तररूपसे मायांकी भी तीनो संग्रह-कृष्टियोके कृष्टि-अन्तर यथाक्रमसे अनन्तगुणित श्रेणीके द्वारा ले जाना चाहिए । यहाँसे आगे मानकी प्रथम संग्रह-कृष्टिमे प्रथम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। इस प्रकार मानकी भी तीनो संग्रहकृष्टियोके कृष्टि-अन्तर यथाक्रमसे अनन्तगुणित श्रेणीके द्वारा ले जाना चाहिए । यहाँसे आगे क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे प्रथम कृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। इस प्रकार क्रोधकी भी तीनो संग्रहकृष्टियोंके अन्तर यथाक्रमसे अन्तिम अन्तर तक अनन्तगुणित श्रेणीके द्वारा' ले जाना चाहिए ॥६२१-६२६।। चूर्णिसू०-उससे, अर्थात् स्वस्थानगुणकारोके अन्तिम गुणकारसे लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका अन्तर अनन्तगुणा है। इससे द्वितीय संग्रहकृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है और इससे तृतीय संग्रहकृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। लोभका और मायाका अन्तर अनन्तगुणा है। मायाका प्रथम संग्रहकृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। इससे द्वितीय संग्रहकृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। इससे तृतीय संग्रहकृष्टि-अन्तर अनन्तगुणा है। मायाका और मानका

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